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सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश धर्मांतरण कानून के तहत दर्ज कई FIRs को रद्द किया, कहा कानून का उद्देश्य निर्दोषों को परेशान करना नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश धर्मांतरण कानून के तहत दर्ज कई FIRs को रद्द किया। अदालत ने कहा कि कानून का उद्देश्य निर्दोषों को परेशान करना नहीं, और पर्याप्त साक्ष्य आवश्यक हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण से संबंधित कानून के तहत दर्ज कई प्राथमिकी (FIRs) को रद्द कर दिया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह कानून निर्दोष नागरिकों को परेशान करने के लिए नहीं बनाया गया है और इसका प्रयोग केवल सामाजिक न्याय और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए होना चाहिए।

न्यायमूर्ति पर्डिवाला की अध्यक्षता वाली पीठ ने पाया कि इन FIRs में कई कानूनी कमजोरियाँ और प्रक्रियागत दोष थे। अदालत ने यह भी कहा कि इनमें पर्याप्त और विश्वसनीय साक्ष्यों का अभाव था, जो किसी भी FIR की वैधता के लिए अनिवार्य हैं। इस तरह के दोषपूर्ण कानूनी आधार और तथ्यों की कमी के कारण ये FIRs न्यायिक दृष्टि से असंगत और अनुचित ठहराए गए।

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी कानून का प्रयोग निर्दोष लोगों को परेशान करने के लिए नहीं किया जा सकता। उन्होंने प्रशासन और पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिए कि भविष्य में ऐसे मामलों में केवल पर्याप्त साक्ष्यों और कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए ही कार्रवाई की जाए।

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विशेषज्ञों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय नागरिकों के अधिकारों की रक्षा और न्यायिक संवेदनशीलता को दर्शाता है। यह फैसला कानून के सही और न्यायपूर्ण उपयोग का उदाहरण है और प्रशासन को यह संदेश देता है कि कानून का दुरुपयोग किसी भी परिस्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि कानून का उद्देश्य समाज में न्याय और स्थिरता बनाए रखना है, न कि निर्दोष लोगों को उत्पीड़ित करना।

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