सुप्रीम कोर्ट ने मेधा पाटकर की आपराधिक मानहानि मामले में सजा बरकरार रखी
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली एल-जी सक्सेना द्वारा दायर आपराधिक मानहानि मामले में मेधा पाटकर की सजा बरकरार रखी, लेकिन ₹1 लाख मुआवजा देने का आदेश रद्द किया।
सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर के खिलाफ आपराधिक मानहानि मामले में उनकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा है। यह मामला दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना द्वारा दायर किया गया था। हालांकि, न्यायालय ने उनके खिलाफ जारी ₹1 लाख मुआवजा देने के आदेश को रद्द कर दिया।
न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा की पीठ ने यह फैसला सुनाया। अदालत ने स्पष्ट किया कि आपराधिक मानहानि के मामले में दोषसिद्धि सही है, लेकिन मुआवजे का आदेश इस मामले की परिस्थितियों में उचित नहीं है।
मामला वर्ष 2000 के दशक का है, जब विनय कुमार सक्सेना, जो उस समय एक गैर-सरकारी संगठन के प्रमुख थे, ने मेधा पाटकर पर झूठे आरोप लगाने और उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया था। पाटकर के बयान को लेकर अदालत में मामला चला और ट्रायल कोर्ट ने उन्हें दोषी करार दिया था। इसके बाद उच्च न्यायालय ने भी दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए ₹1 लाख मुआवजा देने का आदेश दिया था।
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सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख और अधिवक्ता अभिमन्यु श्रेष्टा ने पाटकर की ओर से दलीलें पेश कीं। उनका कहना था कि यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा है और इसे मानहानि नहीं माना जाना चाहिए। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने इन दलीलों को खारिज करते हुए दोषसिद्धि को सही ठहराया।
इस फैसले के बाद पाटकर को सजा तो भुगतनी होगी, लेकिन उन्हें मुआवजा राशि का भुगतान नहीं करना पड़ेगा। यह मामला मानहानि कानून और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन पर एक महत्वपूर्ण न्यायिक टिप्पणी के रूप में देखा जा रहा है।
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