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ट्रंप की 1 लाख डॉलर H-1B वीज़ा फीस पर कानूनी लड़ाई तेज, अमेरिकी राज्यों ने दी चुनौती

कैलिफ़ोर्निया समेत 20 अमेरिकी राज्यों ने ट्रंप की 1 लाख डॉलर H-1B वीज़ा फीस को अवैध बताते हुए अदालत में चुनौती दी है, जिससे आव्रजन और रोजगार पर असर का मुद्दा गरमा गया है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा नए H-1B वीज़ा पर 1 लाख डॉलर (100,000 डॉलर) की फीस लगाने के फैसले के खिलाफ कानूनी चुनौती तेज हो गई है। कैलिफ़ोर्निया समेत 19 अमेरिकी राज्यों ने शुक्रवार (12 दिसंबर 2025) को इस फैसले को रोकने के लिए बोस्टन की एक संघीय अदालत में मुकदमा दायर किया।

यह मुकदमा सितंबर में घोषित उस शुल्क के खिलाफ कम से कम तीसरी कानूनी चुनौती है, जिसने H-1B वीज़ा हासिल करने की लागत को कई गुना बढ़ा दिया है। अभी तक नियोक्ता आमतौर पर 2,000 से 5,000 डॉलर तक की फीस अदा करते थे। कैलिफ़ोर्निया के अटॉर्नी जनरल रॉब बॉन्टा के कार्यालय ने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप के पास इतनी अधिक फीस लगाने का अधिकार नहीं है और यह संघीय कानून का उल्लंघन है। कानून के अनुसार, आव्रजन एजेंसियां केवल वीज़ा कार्यक्रम के संचालन की लागत पूरी करने के लिए ही शुल्क ले सकती हैं।

H-1B वीज़ा कार्यक्रम के तहत अमेरिकी कंपनियां विशेष क्षेत्रों में कुशल विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त कर सकती हैं। कैलिफ़ोर्निया में स्थित कई बड़ी टेक कंपनियां इस वीज़ा पर निर्भर हैं। बॉन्टा ने कहा कि 1 लाख डॉलर की फीस शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं जैसे अहम क्षेत्रों में काम करने वाले संस्थानों पर अनावश्यक वित्तीय बोझ डालेगी, जिससे श्रम संकट बढ़ेगा और सेवाएं प्रभावित होंगी।

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इस मुकदमे में कैलिफ़ोर्निया के साथ न्यूयॉर्क, मैसाचुसेट्स, इलिनोइस, न्यू जर्सी और वॉशिंगटन जैसे राज्य भी शामिल हैं। व्हाइट हाउस ने अन्य मामलों में कहा है कि यह शुल्क ट्रंप की कानूनी शक्तियों के तहत लगाया गया है और इससे H-1B कार्यक्रम के दुरुपयोग पर रोक लगेगी।

हालांकि, व्यापारिक संगठनों का कहना है कि H-1B वीज़ा योग्य अमेरिकी कर्मचारियों की कमी को पूरा करने का अहम जरिया है। अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स और यूनियनों व नियोक्ताओं के गठबंधन ने भी अलग-अलग मुकदमे दायर किए हैं। अगले सप्ताह वॉशिंगटन डीसी में एक सुनवाई तय है। कैलिफ़ोर्निया का तर्क है कि इतनी अधिक फीस संविधान के खिलाफ है और राजस्व जुटाने का अधिकार केवल कांग्रेस को है।

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