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वायनाड भूस्खलन के एक साल बाद भी ज़िंदगी से जूझते पीड़ितों की कहानी

वायनाड के पुथुमाला गांव में भयावह भूस्खलन के एक साल बाद भी पीड़ित अपने जीवन को फिर से संवारने की कोशिश कर रहे हैं—कहानियां हैं साहस, संघर्ष और असहनीय दुख की।

केरल के वायनाड जिले के मेप्पाडी ग्राम पंचायत के पुथुमाला क्षेत्र में आज भी एक साल पहले आए विनाशकारी भूस्खलन के दर्दनाक निशान देखे जा सकते हैं। 30 जुलाई 2024 को आए इस प्राकृतिक आपदा ने 298 लोगों की जान ले ली थी और सैकड़ों लोगों को बेघर और बेसहारा कर दिया था।

भले ही एक साल बीत चुका हो, लेकिन गांववासी आज भी उस भयावह रात की यादों और अपने खोए हुए परिजनों के दर्द से उबर नहीं पाए हैं। पत्रकार अब्दुल लतीफ नाहा ने कुछ पीड़ितों से मिलकर उनकी जिंदगियों में आए इस तूफान के बाद की जद्दोजहद को उजागर किया है।

निवेद, जो 7 जुलाई को 10 साल का होता, अब अपने दो भाइयों ध्यान और ईशान के साथ पुथुमाला में एक ही कब्र में दफन है। इस त्रासदी ने एक साथ कई परिवारों की खुशियां छीन लीं। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक, कोई भी इससे अछूता नहीं रहा।

हालांकि, इस दर्द के बीच कुछ उम्मीदें भी हैं। जीवित बचे लोग—जिन्होंने न केवल अपने परिजन, बल्कि अपना घर, जमीन और आजीविका सब कुछ खो दिया—अब नए सिरे से जीवन शुरू करने का साहस जुटा रहे हैं। सरकारी मदद सीमित है, लेकिन स्थानीय समुदाय और स्वयंसेवी संगठनों के सहयोग से पुनर्निर्माण की कोशिशें जारी हैं।

यह कहानी सिर्फ एक त्रासदी की नहीं, बल्कि मानव जिजीविषा, धैर्य और पुनरुत्थान की भी है। वायनाड के पुथुमाला के ये लोग आज भी अपनी ज़िंदगी को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं।

 

 
 
 
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