हंगरी को अमेरिकी प्रतिबंधों से छूट, लेकिन भारत को नहीं — आखिर क्यों?
अमेरिका ने हंगरी को रूसी तेल प्रतिबंधों से छूट दी, जबकि भारत को ऊंचे टैरिफ झेलने पड़े। विश्लेषकों के अनुसार, यह अमेरिकी आर्थिक हितों का परिणाम है।
रूसी तेल पर अमेरिकी प्रतिबंधों के बीच, भारत को जहां भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है, वहीं हंगरी को छूट मिल गई है। इस निर्णय ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं कि आखिर हंगरी को छूट और भारत को सजा क्यों?
22 अक्टूबर को अमेरिका ने रूसी तेल कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकोइल पर प्रतिबंध लगाए थे। इसके बाद 7 नवंबर को अमेरिका ने हंगरी को एक साल की छूट देने की घोषणा की। इस छूट के बदले हंगरी ने अमेरिका से 600 मिलियन डॉलर के LNG (तरलीकृत प्राकृतिक गैस) और 114 मिलियन डॉलर के परमाणु ईंधन की खरीद का वादा किया है।
इसके विपरीत, भारत पर अमेरिकी दबाव लगातार बढ़ रहा है। रूस से तेल खरीदने के कारण भारत पर ऊंचे अमेरिकी टैरिफ लगाए गए हैं, जिससे भारतीय व्यापारिक हितों को नुकसान हो रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत अमेरिका से अधिक ऊर्जा खरीदने या व्यापारिक समझौता करने पर विचार करे, तो यह तनाव कम हो सकता है।
गौरतलब है कि 30 अक्टूबर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात में रूसी तेल पर कोई चर्चा नहीं हुई, जबकि चीन रूस से तेल का सबसे बड़ा खरीदार है। चीन ने पहले से ही अपना भुगतान तंत्र विकसित कर लिया है, जिससे वह अमेरिकी प्रतिबंधों से सुरक्षित है।
इस प्रकार, विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका की विदेश नीति आर्थिक हितों पर आधारित है, न कि निष्पक्षता पर। भारत को अब अपने ऊर्जा विकल्पों और राजनयिक रणनीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
और पढ़ें: अमेरिकी प्रतिबंधों के घेरे में भारतीय नागरिक और पत्नी, मानव तस्करी के आरोप में कार्रवाई