सीरिया में तटीय हिंसा पर पहला सार्वजनिक मुकदमा शुरू, 14 आरोपी कोर्ट में पेश
सीरिया में तटीय हिंसा पर पहला मुकदमा शुरू हुआ। 14 आरोपी पेश हुए। जांच में 1,400 मौतों की पुष्टि हुई, जबकि UN ने सरकारी गुटों की संगठित हिंसा पर चिंता जताई।
सीरिया में इस वर्ष की शुरुआत में तटीय प्रांतों में भड़की घातक हिंसा को लेकर पहला सार्वजनिक मुकदमा मंगलवार को शुरू हुआ। राज्य मीडिया के अनुसार, मार्च में हुई हिंसा की एक महीने लंबी सरकारी जांच के बाद 14 आरोपियों को अलेप्पो के पैलेस ऑफ जस्टिस में पेश किया गया। यह हिंसा सरकारी बलों और अपदस्थ राष्ट्रपति बशर अल-असद के समर्थकों के बीच संघर्ष के बाद तेजी से सांप्रदायिक हमलों में बदल गई थी।
जांच समिति ने कुल 563 संदिग्धों को न्यायपालिका के पास भेजा है। अदालत में पेश किए गए 14 आरोपियों में सात असद समर्थक थे और शेष सात नई सरकार की सुरक्षा बलों से जुड़े हुए थे। टेलीविज़न पर प्रसारित सुनवाई में न्यायाधीश को यह पूछते सुना गया कि आरोपी नागरिक हैं या सैन्य कर्मी।
दशकों से असद परिवार के निरंकुश शासन के बाद, न्यायिक सुधार की वैश्विक और घरेलू मांग के बीच यह मुकदमा नई सरकार की पारदर्शिता की परीक्षा माना जा रहा है। हालांकि प्रारंभिक रिपोर्टों में कहा गया था कि जल्द ही आरोप तय हो सकते हैं, लेकिन न्यायाधीश ने सुनवाई स्थगित करते हुए अगली तारीख दिसंबर के लिए रखी।
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राज्य मीडिया के अनुसार, आरोपियों पर राजद्रोह, गृहयुद्ध भड़काने, सुरक्षा बलों पर हमला करने, हत्या, लूटपाट और सशस्त्र गिरोह चलाने जैसे गंभीर आरोप लग सकते हैं। हिंसा के पैमाने और संदिग्धों की संख्या को देखते हुए यह स्पष्ट नहीं है कि मुकदमा कितने समय तक चलेगा।
मार्च में हिंसा तब शुरू हुई जब असद समर्थक समूहों ने नई सरकार की सुरक्षा बलों पर घात लगाकर हमला किया। इसके बाद बदले की कार्रवाइयों ने तटीय क्षेत्रों में रहने वाले अलावी अल्पसंख्यक समुदाय के सैकड़ों नागरिकों के नरसंहार का रूप ले लिया। अलावी समुदाय के खिलाफ हमलों से अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा पर भारी दबाव बढ़ा, जो दिसंबर से पद पर हैं और अमेरिका से प्रतिबंध हटवाने एवं आर्थिक सहयोग बहाल करने की कोशिश कर रहे हैं।
सरकारी जांच में पाया गया कि सांप्रदायिक हिंसा में 1,400 से अधिक लोगों की मौत हुई, जिनमें अधिकांश नागरिक थे। हालांकि, जांच में नई सरकार के सैन्य नेतृत्व द्वारा अलावी समुदाय को निशाना बनाने के आदेश देने के सबूत नहीं मिले। इसके विपरीत, संयुक्त राष्ट्र की जांच ने कहा कि सरकारी समर्थक गुटों द्वारा नागरिकों पर की गई हिंसा “व्यापक और संगठित” थी। रिपोर्ट में बताया गया कि अलावी बहुल इलाकों में घरों पर छापे मारे गए और पुरुषों व लड़कों को उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर चुनकर मार दिया गया।