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पश्चिम बंगाल में मुस्लिम राजनीति का नया मोड़: हुमायूँ कबीर की बाबरी मस्जिद रणनीति और चुनावी समीकरण

हुमायूँ कबीर द्वारा बाबरी मस्जिद शैली की मस्जिद निर्माण और नई पार्टी की घोषणा से बंगाल की मुस्लिम राजनीति में नया उफान आया है, जो टीएमसी और BJP दोनों के समीकरण बदल सकता है।

पश्चिम बंगाल की मुस्लिम राजनीति में इस समय बड़ा उभार देखने को मिल रहा है, जिसका केंद्र निलंबित टीएमसी विधायक हुमायूँ कबीर बने हुए हैं। 62 वर्षीय कबीर ने 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद की तर्ज पर बेलडांगा में मस्जिद निर्माण की घोषणा कर राजनीतिक हलचल पैदा कर दी। यह वही क्षेत्र है जहां अप्रैल 2025 में सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। कबीर 135 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर नई पार्टी बनाने का दावा कर रहे हैं और AIMIM व ISF से संपर्क की बात भी करते हैं, हालांकि AIMIM ने उनसे संबंध नकार दिए हैं।

कबीर का राजनीतिक इतिहास कई पार्टियों में आने–जाने से भरा है—2015 में टीएमसी से निष्कासन, 2016 में निर्दलीय हार, 2019 में BJP में प्रवेश, फिर 2021 में टीएमसी में वापसी और जीत। अब वे बंगाल में मुस्लिम वोट को नया नेतृत्व देने की बात कर रहे हैं।

बंगाल में लगभग 27% मुस्लिम जनसंख्या है, जो मुख्यतः मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तर दिनाजपुर, बीरभूम और 24 परगना जिलों में केंद्रित है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार 2026 के चुनाव में मुस्लिम वोटों के 10-15% तक कबीर की ओर झुकने की संभावना जताई जा रही है, जिससे टीएमसी की मजबूती को चुनौती मिल सकती है। कुछ सीटों पर वोटों की कटौती से BJP को भी लाभ मिल सकता है।

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बिहार की तर्ज पर मुस्लिम पहचान आधारित राजनीति की वापसी बंगाल में नए समीकरण बना सकती है। बाबरी मस्जिद पुनर्निर्माण का मुद्दा प्रतीकात्मक रूप से मुस्लिम पहचान की राजनीति को मजबूत कर सकता है। हालांकि, अभी भी ममता बनर्जी का संगठनात्मक ढांचा और उनकी पकड़ मजबूत है। इस बदलते माहौल में देखा जाएगा कि कबीर प्रभावी ‘गेम चेंजर’ बन पाते हैं या नहीं।

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