आरसीईपी से बाहर रहकर भी भारत ने कैसे हासिल किए फायदे, चीन जोखिम से रखा खुद को दूर
भारत ने आरसीईपी से बाहर रहते हुए द्विपक्षीय एफटीए के जरिए सभी सदस्य देशों से व्यापारिक लाभ हासिल किए, जबकि चीन से जुड़े जोखिम और टैरिफ नियंत्रण से खुद को सुरक्षित रखा।
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) में शामिल होने से 2019 में पीछे हटने के छह साल बाद, भारत अब उस व्यापारिक समूह जैसे ही लाभ हासिल करने की स्थिति में है, वह भी बिना किसी बड़े जोखिम के। खास बात यह है कि भारत ने इस रणनीति के तहत खुद को ‘चीन जोखिम’ से सुरक्षित रखा है, जिसे आरसीईपी में शामिल होने का सबसे बड़ा खतरा माना जा रहा था।
22 दिसंबर 2025 को भारत और न्यूज़ीलैंड ने एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर बातचीत पूरी होने की घोषणा की। इस समझौते के लागू होने के बाद भारत के पास आरसीईपी के सभी सदस्य देशों के साथ एफटीए होंगे, सिवाय चीन के। विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम भारत को वैश्विक और क्षेत्रीय बाजारों तक बेहतर पहुंच देता है, लेकिन चीन को टैरिफ नियंत्रण सौंपे बिना।
आरसीईपी दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक ब्लॉक है, जिसमें आसियान के 10 देश, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड शामिल हैं। भारत ने 2019 में इस समझौते से यह कहते हुए दूरी बना ली थी कि इससे घरेलू उद्योग, खासकर कृषि और एमएसएमई सेक्टर, सस्ते चीनी आयात से प्रभावित हो सकते हैं।
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अब भारत ने द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौतों के जरिए वही लक्ष्य हासिल किया है। इन एफटीए के माध्यम से भारतीय निर्यातकों को ऑस्ट्रेलिया, जापान, दक्षिण कोरिया और अब न्यूज़ीलैंड जैसे देशों के बाजारों में पहुंच मिल रही है। साथ ही, भारत अपने टैरिफ और व्यापार नीति पर पूरा नियंत्रण बनाए रखने में सफल रहा है।
व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि यह रणनीति भारत के लिए संतुलित और व्यावहारिक है। इससे न केवल निर्यात बढ़ाने का रास्ता खुलता है, बल्कि घरेलू उद्योगों को अचानक प्रतिस्पर्धा के दबाव से भी बचाया जा सकता है। चीन को बाहर रखकर भारत ने अपने आर्थिक हितों और रणनीतिक चिंताओं दोनों को संतुलित करने में सफलता पाई है।
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