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महिलाएं देश की सबसे बड़ी अल्पसंख्यक हैं, बिना आरक्षण के भी उन्हें प्रतिनिधित्व क्यों न दिया जाए? — सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाएं भारत की “सबसे बड़ी अल्पसंख्यक” हैं और संसद में उनकी भागीदारी लगातार घट रही है, इसलिए उन्हें बिना आरक्षण भी प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (10 नवंबर 2025) को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत में महिलाएं देश की “सबसे बड़ी अल्पसंख्यक” हैं, फिर भी संसद में उनका प्रतिनिधित्व लगातार घटता जा रहा है। अदालत ने सवाल उठाया कि जब महिलाओं की भागीदारी लोकतंत्र की आत्मा है, तो उन्हें बिना आरक्षण भी उचित प्रतिनिधित्व क्यों नहीं दिया जा सकता?

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना, जो सुप्रीम कोर्ट की एकमात्र महिला न्यायाधीश हैं, ने की। वह दो-न्यायाधीशों की पीठ की अध्यक्षता कर रही थीं। उन्होंने कहा कि संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की उपस्थिति में गिरावट चिंता का विषय है, जबकि देश की जनसंख्या में महिलाएं लगभग आधी हैं।

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, “महिलाएं देश की सबसे बड़ी अल्पसंख्यक हैं — संख्या में भी और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में भी। उन्हें केवल आरक्षण के माध्यम से ही प्रतिनिधित्व क्यों दिया जाए? क्या हम एक ऐसा राजनीतिक माहौल नहीं बना सकते जहाँ उनकी भागीदारी स्वाभाविक रूप से सुनिश्चित हो?”

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सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि महिलाओं का राजनीतिक सशक्तिकरण केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि नीति निर्माण में उनकी भागीदारी के माध्यम से होना चाहिए।

हाल ही में पारित महिला आरक्षण विधेयक 2023, जो संसद और विधानसभाओं में 33% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करता है, के बाद भी अदालत ने इस बात पर चिंता जताई कि राजनीतिक दल अभी भी पर्याप्त संख्या में महिला उम्मीदवार नहीं उतारते।

अदालत ने कहा कि महिलाओं की भागीदारी में कमी लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करती है और देश की नीतियों में संतुलन की कमी पैदा करती है।

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