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चीन की खनिज बादशाहत को चुनौती: ऑस्ट्रेलिया-अमेरिका का नया रणनीतिक गठबंधन

ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका ने चीन की दुर्लभ खनिजों पर एकाधिकार को तोड़ने के लिए 13 अरब डॉलर का निवेश कर नई औद्योगिक और रक्षा साझेदारी की नींव रखी है।

ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका ने मिलकर एक ऐसा कदम उठाया है जो आने वाले वर्षों में वैश्विक शक्ति संतुलन को हिला सकता है। दोनों देशों ने चीन के खनिज साम्राज्य को चुनौती देने के लिए एक महत्वपूर्ण खनिज समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते के तहत अगले छह महीनों में दोनों देश मिलकर लगभग 13 अरब डॉलर (8.5 अरब अमेरिकी डॉलर) के निवेश से खनिज परियोजनाओं की एक नई पाइपलाइन खड़ी करेंगे। उद्देश्य साफ है—रक्षा, औद्योगिक और स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में चीन की पकड़ को कमजोर करना।

प्रधानमंत्री एंथनी एल्बनीज़ और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते को “आर्थिक और रणनीतिक स्वतंत्रता की दिशा में बड़ा कदम” बताया। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया दोनों ही अब तक गैलियम, नियोडिमियम और प्रसीओडिमियम जैसे खनिजों के लिए चीन पर निर्भर थे—ये तत्व मिसाइल गाइडेंस सिस्टम, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर, विंड टरबाइन और इलेक्ट्रिक मोटर जैसी आधुनिक तकनीकों के लिए रीढ़ माने जाते हैं।

ऑस्ट्रेलिया के दो “प्राथमिक प्रोजेक्ट”

एल्बनीज़ ने दो प्रमुख परियोजनाओं को “प्राथमिक” घोषित किया—एक Alcoa की पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में प्रस्तावित गैलियम प्लांट, और दूसरी Arafura Rare Earths की उत्तरी क्षेत्र (Northern Territory) में दुर्लभ खनिज परियोजना।
पहला प्लांट चीन के गैलियम एकाधिकार को तोड़ने की दिशा में एक निर्णायक कदम है। अमेरिका इस प्लांट में हिस्सेदारी लेगा, जबकि जापान भी साझेदार है। दूसरा प्रोजेक्ट नियोडिमियम और प्रसीओडिमियम ऑक्साइड का उत्पादन करेगा, जो हाई-पावर मैग्नेट्स और रक्षा प्रणालियों के लिए आवश्यक हैं। ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने इसमें 100 मिलियन डॉलर की इक्विटी सहायता दी है, जबकि अमेरिका 300 मिलियन डॉलर तक निवेश पर विचार कर रहा है।

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रणनीति का असली उद्देश्य: चीन से स्वतंत्रता

दशकों से चीन ने अपने विशाल स्मेल्टर नेटवर्क के जरिये कीमतें घटाकर वैश्विक प्रतिस्पर्धियों को खत्म किया और दुर्लभ खनिज आपूर्ति पर लगभग एकाधिकार कायम कर लिया। यह नया समझौता उस खेल को उलटने का प्रयास है।
ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका अब इन खनिजों का उत्पादन और परिष्करण अपने नियंत्रण में लाना चाहते हैं ताकि उनकी औद्योगिक और रक्षा आपूर्ति श्रृंखला चीन से मुक्त हो सके। यह भी तय किया गया है कि इन परियोजनाओं का अंतिम उत्पाद केवल अमेरिकी और ऑस्ट्रेलियाई बाजारों में बेचा जाएगा—चीन को नहीं।अर्थशास्त्रीय संकेत और निवेशक लाभ

खनिज क्षेत्र में निवेशकों की खुशी देखते ही बन रही है। Arafura के शेयर पिछले महीने में 150% उछल गए हैं, जबकि पूरे ऑस्ट्रेलियाई खनन क्षेत्र ने इसे “आर्थिक भविष्य की दिशा तय करने वाला ऐतिहासिक कदम” बताया है।
हालाँकि, कुछ आलोचकों का कहना है कि यह समझौता “राष्ट्रीय संसाधनों की बिक्री” जैसा है, क्योंकि अमेरिका को प्राथमिक पहुँच दी गई है। एक और बड़ा सवाल यह भी है कि चीन कैसे प्रतिक्रिया देगा—क्या वह वैश्विक कीमतों में हेरफेर करके इस उभरते गठबंधन को कमजोर करने की कोशिश करेगा?

निष्कर्ष

यह समझौता सिर्फ खनिज व्यापार नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति के नए समीकरणों की शुरुआत है। आने वाले महीनों में यह तय करेगा कि तकनीकी आत्मनिर्भरता की दौड़ में कौन आगे रहेगा—चीन की केंद्रीकृत व्यवस्था या अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया की साझी लोकतांत्रिक रणनीति।

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