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बांग्लादेश में बंगाली सांस्कृतिक संस्थानों पर हमले, पाकिस्तान कनेक्शन की ओर इशारा

बांग्लादेश में उदीची और छायानट जैसे बंगाली सांस्कृतिक संस्थानों पर हमले बढ़े हैं। अंतरिम सरकार पर विफलता के आरोप हैं और इन घटनाओं के पीछे पाकिस्तान समर्थित ताकतों की आशंका जताई जा रही है।

बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा बंगाली सांस्कृतिक संस्थानों को निशाना बनाए जाने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। शेख हसीना की सरकार के पतन और मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार के गठन के बाद हालात और बिगड़ गए हैं। आरोप है कि अंतरिम सरकार भीड़ को काबू में करने और अल्पसंख्यकों व सांस्कृतिक संस्थाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफल रही है।

शुक्रवार को ढाका स्थित बांग्लादेश के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन ‘उदीची शिल्पी गोष्ठी’ के कार्यालय पर हमला किया गया। उदीची की स्थापना 1968 में क्रांतिकारी उपन्यासकार सत्येन सेन और रणेश दास गुप्ता समेत अन्य बुद्धिजीवियों ने की थी। 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान बंगाली पहचान को मजबूत करने में इस संगठन की अहम भूमिका रही। वर्ष 2013 में उदीची को बांग्लादेश के प्रतिष्ठित ‘एकुशे पदक’ से सम्मानित किया गया था।

हमले के बाद उदीची के सदस्यों ने ढाका में विरोध प्रदर्शन किया और आरोप लगाया कि धमकियों के बावजूद यूनुस सरकार और कानून-व्यवस्था एजेंसियां संस्थान की सुरक्षा करने में नाकाम रहीं। उदीची के महासचिव अमित रंजन डे ने कहा कि सरकार स्थिति से अवगत होने के बावजूद कोई कदम नहीं उठा सकी, जिससे उपद्रवियों ने बिना किसी विरोध के कार्यालय में आग लगा दी।

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शरीफ उस्मान हादी, एक भारत-विरोधी कट्टरपंथी नेता, की मौत के बाद हुए प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया। इस दौरान ‘प्रथम आलो’ और ‘द डेली स्टार’ जैसे प्रमुख अखबारों के कार्यालयों पर हमले हुए। इसके अलावा, सांस्कृतिक संस्था ‘छायानट’ की इमारत को भी नुकसान पहुंचाया गया।

इन सांस्कृतिक संगठनों को जमात-ए-इस्लामी जैसे राजनीतिक दल संदेह की नजर से देखते हैं, जिनके पाकिस्तान से पुराने संबंध रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि हालिया घटनाएं बांग्लादेश को अस्थिर करने की एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा हो सकती हैं, जिसमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं।

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