विशाखापट्टनम में लुलु समूह को आवंटित भूमि रद्द करने की मांग तेज
सिविल सोसाइटी संगठनों ने विशाखापट्टनम में लुलु समूह को दी गई भूमि रद्द करने की मांग की। समूह को स्टाम्प ड्यूटी, ‘नाला’ शुल्क और 10 साल के जीएसटी से छूट मिली है।
सिविल सोसाइटी संगठनों ने आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में लुलु समूह को आवंटित भूमि को रद्द करने की जोरदार मांग की है। उनका आरोप है कि राज्य सरकार ने समूह को अनुचित रियायतें दी हैं, जिनमें पंजीकरण पर स्टाम्प ड्यूटी से छूट, ‘नाला’ शुल्क (गैर-कृषि भूमि उपयोग शुल्क) से राहत और 10 वर्षों के लिए जीएसटी से छूट शामिल है।
इन संगठनों का कहना है कि ऐसी रियायतें आम निवेशकों को नहीं मिलतीं और यह सार्वजनिक संसाधनों का दुरुपयोग है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने लुलु समूह को लाभ पहुंचाने के लिए नियमों में ढील दी है, जबकि स्थानीय उद्योगों और उद्यमियों को इस तरह की सुविधाएं नहीं दी जातीं।
सिविल सोसाइटी प्रतिनिधियों का तर्क है कि विशाखापट्टनम जैसे विकसित हो रहे औद्योगिक शहर में भूमि अत्यंत मूल्यवान है और इसे किसी एक निजी समूह को इतनी रियायतों के साथ देना जनता के हित में नहीं है। उनका कहना है कि इन रियायतों से सरकारी खजाने को बड़ा नुकसान होगा।
आंदोलनकारी संगठनों ने सरकार से मांग की है कि वह इस भूमि आवंटन को तुरंत रद्द करे और मामले की निष्पक्ष जांच कराए। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की, तो वे बड़े पैमाने पर आंदोलन करेंगे।
इस विवाद पर अभी तक सरकार या लुलु समूह की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि राज्य सरकार इस परियोजना को रोजगार सृजन और निवेश बढ़ाने के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण मानती है। वहीं, विरोध करने वाले समूह इसे अनुचित सौदा बता रहे हैं।
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