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कल्याण बिगहा और फुलवारिया: दो गांवों की किस्मत और नेताओं की राजनीति

नीतीश कुमार का गांव कल्याण बिगहा विकास का प्रतीक बन गया है, जबकि लालू प्रसाद यादव का फुलवारिया अब भी उपेक्षा और विकास की प्रतीक्षा में है।

बिहार के लगभग 45,000 गांवों में से दो गांव इस बार विशेष चर्चा में हैं — नालंदा का कल्याण बिगहा और गोपालगंज का फुलवारिया। ये दोनों गांव अपने-अपने नेताओं की राजनीतिक किस्मत और विकास यात्रा के प्रतीक बन गए हैं।

कल्याण बिगहा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पैतृक गांव है, जो नालंदा जिले के हरनौत विधानसभा क्षेत्र में स्थित है। कभी साधारण ग्रामीण बस्ती रहा यह गांव आज आधुनिकता का उदाहरण बन चुका है। यहां पक्की सड़कें, बिजली, स्वच्छ पानी और शिक्षा की बेहतर सुविधाएं मौजूद हैं। नीतीश कुमार का दो मंजिला पक्का घर गांव की पहचान बन गया है। घर में आधुनिक सुविधाएं हैं — सामने स्टील की रेलिंग, दीवार पर भगवान गणेश की मूर्ति, एयर कंडीशनर के वेंट और ऊपर सफेद पानी के टैंक लगे हैं। यह सब बिहार के ग्रामीण इलाकों में विकास की नई तस्वीर पेश करते हैं।

दूसरी ओर, फुलवारिया, जो राजद प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का पैतृक गांव है, अब उपेक्षा और पिछड़ेपन से जूझ रहा है। यहां की सड़कों की हालत खराब है, बिजली और जल आपूर्ति सीमित है, और रोजगार के अवसर बहुत कम हैं। ग्रामीणों को उम्मीद है कि अगर राजद दोबारा सत्ता में आती है तो उनके गांव का भी कायाकल्प होगा।

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इन दो गांवों की कहानी बिहार की राजनीतिक और सामाजिक सच्चाई को उजागर करती है — सत्ता के साथ विकास आता है, और सत्ता से दूरी अक्सर पिछड़ेपन का कारण बनती है। कल्याण बिगहा विकास की मिसाल है, जबकि फुलवारिया उम्मीदों की प्रतीक्षा में है।

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