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मोहन भागवत ने पड़ोसी देशों में अशांति को बताया ‘अराजकता की व्याकरण’

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने पड़ोसी देशों में हिंसक अशांति को “अराजकता की व्याकरण” बताया, लोकतांत्रिक बदलाव पर जोर दिया और भारत की सुरक्षा, आत्मनिर्भरता और क्षेत्रीय स्थिरता के महत्व पर प्रकाश डाला।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश में हालिया अशांति को लेकर चिंता जताते हुए इसे बी.आर. आंबेडकर द्वारा वर्णित “अराजकता की व्याकरण” बताया। नागपुर के रेशिंमबाग में आयोजित वार्षिक विजयादशमी रैली में, जो आरएसएस की शताब्दी समारोह का हिस्सा भी थी, भागवत ने कहा कि भारत में अशांति फैलाने वाली ताकतें न केवल बाहर से बल्कि देश के भीतर भी सक्रिय हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि हिंसक प्रदर्शन से कोई सकारात्मक बदलाव नहीं आता।

भागवत ने कहा कि श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में जनता के हिंसक प्रदर्शन और सरकारों के बदलाव चिंता का विषय हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि बदलाव लोकतांत्रिक साधनों से ही संभव है, क्योंकि हिंसक क्रांतियों से सिर्फ अस्थिरता, विदेशी हस्तक्षेप और शासन पतन होता है। नेपाल में भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के खिलाफ शुरू हुए शांतिपूर्ण प्रदर्शन हिंसक संघर्ष में बदल गए, जिससे सत्ता परिवर्तन हुआ। ऐसे घटनाक्रम क्षेत्रीय अस्थिरता पैदा करते हैं और भारत को भी प्रभावित कर सकते हैं।

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि पड़ोसी देशों में शांति, स्थिरता और समृद्धि भारत के लिए आवश्यक हैं, क्योंकि ये केवल सुरक्षा के दृष्टिकोण से ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंधों के कारण भी महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने आत्मनिर्भरता और स्वदेशी संसाधनों को प्राथमिकता देने पर बल दिया, ताकि अंतरराष्ट्रीय व्यापार और राजनीति में भारत अपनी स्वतंत्रता बनाए रख सके। भागवत ने आतंकवाद और पर्यावरणीय जोखिमों का भी उल्लेख किया, साथ ही कहा कि आर्थिक असमानता, संसाधनों का केंद्रीकरण और पर्यावरणीय क्षरण जैसी खामियों पर तुरंत ध्यान देना जरूरी है।

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