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बिहार का चुनावी रण: क्या प्रवासी मतदाता बने किंगमेकर?

बिहार चुनाव में प्रवासी मतदाता, महिलाएं और युवा निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं। बढ़ी मतदान दर और नई योजनाएं इस चुनाव के नतीजों को नया मोड़ दे सकती हैं।

बिहार विधानसभा चुनाव इस बार कई नए समीकरणों और अप्रत्याशित पहलुओं के बीच लड़ा जा रहा है। सवाल यह है कि इस बार सत्ता की कुर्सी पर कौन बैठेगा — एनडीए, महागठबंधन या कोई तीसरा विकल्प?

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस चुनाव में कुछ ऐसे "एक्स-फैक्टर्स" हैं जो पूरे नतीजों की दिशा बदल सकते हैं। इनमें सबसे अहम है 8 प्रतिशत की बढ़ी हुई मतदान दर — यह किसके पक्ष में जाएगी, यह बड़ा सवाल है। दूसरी ओर, महिलाओं को आकर्षित करने के लिए ₹10,000 की ‘महिला योजना’ को भी संभावित गेमचेंजर माना जा रहा है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सेहत को लेकर सहानुभूति की लहर भी चर्चा में है। क्या इससे एनडीए को लाभ होगा? दूसरी ओर, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी "युवा बदलाव" के नारे पर काम कर रही है, जबकि एनडीए की ओर से “महिलाएं नी-मो (नीतीश-मोदी) के साथ” का नारा बुलंद है।

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महागठबंधन की सबसे बड़ी चुनौती है कि क्या वह अपने पारंपरिक ‘एम-वाई’ (मुस्लिम-यादव) वोट बैंक से आगे निकल पाएगा। वहीं, “वोट चोरी” के आरोपों ने चुनावी बहस को और गरमा दिया है।

दिलचस्प बात यह है कि इस बार बिहार से बाहर रहने वाले लाखों प्रवासी मतदाताओं ने भी चुनावी माहौल को प्रभावित किया है। इन प्रवासियों ने सोशल मीडिया और परिवारों के जरिए मतदाताओं की राय पर असर डाला है, जिससे उनका अप्रत्यक्ष प्रभाव बढ़ गया है।

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