छठ, चोखा और चंपारण मीट: बदलती बिहारी पहचान की नई कहानी
बिहार की छवि बदल रही है। छठ पूजा, लिट्टी-चोखा और सांस्कृतिक योगदान ने ‘बिहारी’ पहचान को नया गौरव दिया है, जो अब गर्व का प्रतीक बन रही है।
बिहार चुनावों के मौसम में जब लाखों प्रवासी बिहारी अपने वोट डालने घर लौट रहे हैं, तब देशभर में ‘बिहारी’ पहचान पर एक नया विमर्श शुरू हो गया है। कभी यह शब्द सामाजिक और सांस्कृतिक बोझ के साथ जुड़ा माना जाता था, लेकिन पिछले एक दशक में इसका अर्थ बदलने लगा है।
गुरुग्राम के संचार विशेषज्ञ अनुप शर्मा कहते हैं, “छठ पूजा जैसे त्योहार अब वैश्विक स्तर पर बिहारी संस्कृति का प्रतीक बन चुके हैं। जो कभी नदी किनारे की परंपरा थी, वह अब सोशल मीडिया के ज़रिए पूरी दुनिया में अपनाई जा रही है।”
अब बिहार के प्रवासी केवल कामगार नहीं, बल्कि सांस्कृतिक दूत के रूप में देखे जा रहे हैं। मुंबई, दिल्ली जैसे शहरों में छठ घाटों की व्यवस्था केवल राजनीतिक कदम नहीं, बल्कि उनकी उपस्थिति की स्वीकृति का प्रतीक है।
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बिहार के व्यंजन जैसे चंपारण मीट और लिट्टी-चोखा अब देश के हर कोने में पसंद किए जाते हैं। वहीं, सोशल मीडिया पर बिहार की छवि सुधारने वाले कंटेंट क्रिएटर, स्टैंड-अप कॉमेडियन और व्लॉगर्स लगातार राज्य की सांस्कृतिक विरासत को नए रूप में पेश कर रहे हैं।
कवि और राजनयिक अभय का कहना है कि आज ‘बिहारी’ कहलाना गर्व की बात है। उन्होंने कहा, “आईटी, शिक्षा, राजनीति, साहित्य से लेकर चिकित्सा तक हर क्षेत्र में बिहारी पेशेवर अपनी पहचान बना रहे हैं।”
हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि बिहार को आर्थिक प्रगति के मामले में अभी लंबा रास्ता तय करना है। लेकिन धीरे-धीरे ‘बिहारी’ पहचान अब गर्व का पर्याय बनती जा रही है।
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