मध्य प्रदेश में बीजेपी का लड़खड़ाता प्रयोग: कार्यकर्ताओं का आरोप—अफसरशाही का अत्याचार, घट रही है भागीदारी
मध्य प्रदेश में बीजेपी की ‘संवाद’ पहल से कार्यकर्ताओं की उम्मीदें पूरी नहीं हो रहीं, शिकायतों पर कार्रवाई न होने से अफसरशाही हावी और बैठकों में भागीदारी घटती दिख रही है।
मध्य प्रदेश में राज्य सरकार के मंत्रियों और जमीनी स्तर के पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच दूरी कम करने के उद्देश्य से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने एक महत्वाकांक्षी प्रयोग शुरू किया था। लेकिन शुरुआत के कुछ ही हफ्तों में यह पहल अपने उद्देश्य से भटकती नजर आ रही है। पार्टी के भीतर से ही संकेत मिल रहे हैं कि स्थानीय नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच खाई लगातार बढ़ रही है, जिससे इस पहल की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े हो गए हैं।
1 दिसंबर को प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने “संवाद” पहल की शुरुआत की थी। इसके तहत यह तय किया गया कि संबंधित मंत्री प्रतिदिन दो घंटे पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में कार्यकर्ताओं से मुलाकात करेंगे और उनकी समस्याएं सुनेंगे। इस पहल का मकसद कार्यकर्ताओं की शिकायतों को सीधे सरकार तक पहुंचाना और प्रशासनिक तंत्र में उनकी अनदेखी की भावना को कम करना था।
हालांकि, इन बैठकों में शामिल रहे वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह प्रयोग अपने लक्ष्य को हासिल करने में नाकाम हो रहा है। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, अधिकांश मामलों में कार्यकर्ताओं की शिकायतों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है। इसके चलते कार्यकर्ताओं में निराशा बढ़ रही है और बैठकों में उनकी भागीदारी भी कम होती जा रही है।
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कई कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि जमीनी स्तर पर फैसले लेने में अफसरशाही का दबदबा बढ़ गया है और निर्वाचित प्रतिनिधियों की भूमिका सीमित होती जा रही है। उनका कहना है कि प्रशासनिक अधिकारियों के “अत्याचार” और उदासीन रवैये के कारण उनकी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं।
पार्टी नेताओं का मानना है कि यदि संवाद पहल को प्रभावी बनाना है, तो केवल शिकायतें सुनना पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि उन पर त्वरित और स्पष्ट कार्रवाई भी जरूरी है। अन्यथा यह प्रयोग केवल औपचारिकता बनकर रह जाएगा और कार्यकर्ताओं का भरोसा कमजोर होगा।
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