मां को अस्पताल में छोड़ना त्याग के बराबर: बॉम्बे हाईकोर्ट ने बेटे को तुरंत शिफ्टिंग और खर्च वहन का आदेश दिया
हाईकोर्ट ने बेटे को मां को सरकारी अस्पताल में शिफ्ट करने, इलाज का खर्च उठाने और उनकी संपत्ति में हस्तक्षेप रोकने का आदेश दिया। अदालत ने इसे “त्याग” का मामला माना।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए कहा कि एक बेटे द्वारा अपनी वृद्ध मां को अस्पताल से डिस्चार्ज कराने से इंकार करना और उन्हें वहीं छोड़ देना “त्याग (abandonment)” माना जाएगा। मामला बांद्रा स्थित एक चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा संचालित अस्पताल का है, जहां महिला का इलाज चल रहा था।
अदालत ने बेटे को निर्देश दिया कि वह अपनी मां को मंगलवार सुबह तक एक नगर निगम द्वारा संचालित अस्पताल में शिफ्ट करवाए। कोर्ट ने कहा कि वह दवाइयों, इलाज में इस्तेमाल होने वाली आवश्यक वस्तुओं और उपचार का पूरा खर्च वहन करेगा। यह भुगतान या तो सरकारी अस्पताल की चैरिटी नीति के अनुसार या CGHS (सेंट्रल गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम) की दरों के अनुसार, जो भी कम हो, उसके आधार पर किया जाएगा।
इसी के साथ, हाईकोर्ट ने बेटे पर एक और प्रतिबंध लगाते हुए कहा कि वह अपनी मां की संपत्तियों—जिनमें बांद्रा (वेस्ट) स्थित आवासीय फ्लैट सहित सभी संपत्ति—में किसी प्रकार का लेन-देन या उपयोग अदालत की अनुमति के बिना नहीं कर सकता।
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अदालत ने राज्य सरकार को भी स्पष्ट निर्देश दिए कि महिला को अस्पताल स्थानांतरित करने से पहले एक सरकारी मेडिकल टीम उनके स्वास्थ्य की जांच करे। इसके अलावा, ट्रांसफर के दौरान एंबुलेंस में सरकारी डॉक्टर मौजूद रहें, ताकि उनकी स्थिति पर लगातार चिकित्सकीय निगरानी रखी जा सके।
कोर्ट ने राज्य को यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा कि नई अस्पताल में महिला को सभी आवश्यक चिकित्सा देखभाल और निगरानी उपलब्ध कराई जाए।
यह आदेश बुजुर्गों की देखभाल से जुड़े मामलों में अदालत के सख्त रुख को दर्शाता है, साथ ही यह भी स्पष्ट करता है कि परिवार के सदस्यों द्वारा किसी भी प्रकार की उपेक्षा कानून के तहत गंभीर रूप से देखी जाएगी।
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