श्रवण कुमार को भूल गए: बॉम्बे हाईकोर्ट ने बेटे को लगाई फटकार, बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल का आदेश
बॉम्बे हाईकोर्ट ने बेटे की याचिका खारिज कर उसे माता-पिता की मेडिकल जरूरतें पूरी करने का आदेश दिया, कहा—माता-पिता की सेवा पवित्र कर्तव्य है, समाज में नैतिक मूल्य कमजोर पड़े हैं।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक बेटे की याचिका पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि यह “दुखद स्थिति” है कि आज बच्चे अपने माता-पिता की देखभाल जैसे मूल कर्तव्यों को भूलते जा रहे हैं। कोर्ट ने टिप्पणी की कि समाज में नैतिक मूल्यों का क्षरण चिंताजनक है और यह मामला इसी गिरावट का उदाहरण है।
यह याचिका 2018 में सिटी सिविल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने के लिए दायर की गई थी, जिसमें बेटे द्वारा अपने बुजुर्ग माता-पिता को गोरेगांव (ईस्ट) के ट्रांजिट कैंप स्थित घर में रहने से रोकने की मांग को खारिज कर दिया गया था। बेटे ने कोर्ट से निवेदन किया था कि उसके माता-पिता को उस घर का उपयोग करने से रोका जाए, जिसे लेकर पारिवारिक विवाद चल रहा था।
हाईकोर्ट ने बेटे की हर मांग पर कड़ा रुख दिखाते हुए कहा कि माता-पिता का सम्मान और उनकी देखभाल करना संतानों का पवित्र दायित्व है। कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि समाज ‘श्रवण कुमार’ जैसी कथा को भूलता जा रहा है, जो माता-पिता के प्रति भक्ति और सेवा का प्रतीक है।
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निर्णय सुनाते हुए कोर्ट ने बेटे को आदेश दिया कि वह अपने माता-पिता के सभी चिकित्सा खर्चों को वहन करे और सुनिश्चित करे कि उन्हें किसी भी तरह की असुविधा या तनाव न हो। कोर्ट ने कहा कि बुजुर्ग माता-पिता की गरिमा, सुविधा और सम्मान की रक्षा करना कानून के साथ-साथ नैतिक कर्तव्य भी है।
कोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह के मामलों की बढ़ती संख्या बताती है कि पारिवारिक मूल्य कमजोर पड़ रहे हैं। ऐसे समय में अदालतों का दायित्व है कि न्याय के साथ-साथ सामाजिक मूल्यों की भी रक्षा की जाए।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि बुजुर्गों को अधिकार है कि वे अपने घर में शांति, सुरक्षा और सम्मान के साथ रह सकें—चाहे परिवार में विवाद ही क्यों न हो।
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