हम अपनी ज़मीन नहीं बेचेंगे: छत्तीसगढ़ में खनन विरोधी आंदोलन के हिंसक होने के बाद ग्रामीणों को बड़ी राहत
छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में खनन विरोधी आंदोलन के बाद प्रशासन ने 8 दिसंबर की सार्वजनिक सुनवाई का परिणाम रद्द किया, जिसे ग्रामीणों ने अपनी जमीन और आजीविका की जीत बताया।
छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के तमनार ब्लॉक में प्रस्तावित कोयला खनन परियोजना के खिलाफ पिछले दो हफ्तों से चल रहे आंदोलन के बाद ग्रामीणों को बड़ी जीत मिली है। 14 गांवों के हजारों निवासी इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं और साफ शब्दों में कह रहे हैं कि वे अपनी कृषि भूमि किसी भी कीमत पर नहीं बेचेंगे। यह जमीन उनके लिए केवल संपत्ति नहीं, बल्कि पीढ़ियों से उनकी आजीविका का एकमात्र साधन रही है।
शनिवार को यह शांतिपूर्ण आंदोलन हिंसक हो गया, जब प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें हुईं और कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया। स्थिति बिगड़ने के बाद इलाके में तनाव फैल गया और प्रशासन को अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात करने पड़े। हालांकि, इस हिंसा के ठीक एक दिन बाद प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों की एक प्रमुख मांग को स्वीकार कर लिया।
जिला प्रशासन ने 8 दिसंबर को आयोजित की गई सार्वजनिक सुनवाई के परिणाम को रद्द करने का फैसला किया। यह वही सुनवाई थी, जिसे ग्रामीण पक्षपातपूर्ण और औपचारिकता भर बताते हुए लंबे समय से खारिज करने की मांग कर रहे थे। ग्रामीणों का आरोप था कि उनकी आपत्तियों और आशंकाओं को नजरअंदाज कर खनन परियोजना को आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही थी।
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ग्रामीणों का कहना है कि यदि कोयला खनन शुरू हुआ तो उनकी उपजाऊ जमीन बर्बाद हो जाएगी, जल स्रोत प्रभावित होंगे और पूरे क्षेत्र का पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ जाएगा। उन्होंने यह भी आशंका जताई कि खनन के कारण विस्थापन बढ़ेगा और स्थानीय समुदायों का सामाजिक ताना-बाना टूट जाएगा।
आंदोलनकारियों ने प्रशासन के फैसले को अपनी एकजुटता और संघर्ष की जीत बताया है, लेकिन साथ ही स्पष्ट किया है कि वे तब तक सतर्क रहेंगे, जब तक परियोजना को पूरी तरह से रद्द नहीं किया जाता। उनका कहना है कि “हम विकास के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन ऐसा विकास नहीं चाहते जो हमारी जमीन, खेती और भविष्य छीन ले।”
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