पर्यावरण पर पीएम की वैश्विक बात और स्थानीय चाल में कोई तालमेल नहीं: कांग्रेस
कांग्रेस ने कहा कि अरावली की नई परिभाषा से 90% क्षेत्र असुरक्षित होगा। जयराम रमेश ने इसे पर्यावरण संतुलन पर हमला बताते हुए पीएम की नीतियों पर सवाल उठाए।
कांग्रेस ने पर्यावरण के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों पर तीखा हमला करते हुए कहा है कि उनके “वैश्विक मंच पर दिए गए भाषण” और “देश के भीतर अपनाई जा रही नीतियों” के बीच कोई संबंध नहीं है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सरकार पर पर्यावरणीय संतुलन पर सुनियोजित हमला करने का आरोप लगाया है।
गुरुवार (25 दिसंबर, 2025) को कांग्रेस ने दावा किया कि अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा के तहत 90 प्रतिशत से अधिक अरावली क्षेत्र को संरक्षण नहीं मिलेगा, जिससे वहां खनन, रियल एस्टेट और अन्य गतिविधियों का रास्ता खुल सकता है। The Indian Witness पर पोस्ट करते हुए जयराम रमेश ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के मामले में प्रधानमंत्री की “ग्लोबल टॉक” और “लोकल वॉक” में कोई तालमेल नहीं है।
उन्होंने कहा कि नई परिभाषा के अनुसार, ‘अरावली पहाड़ी’ वही मानी जाएगी जिसकी ऊंचाई आसपास के क्षेत्र से कम से कम 100 मीटर अधिक हो, जबकि ‘अरावली रेंज’ दो या उससे अधिक ऐसी पहाड़ियों का समूह होगी, जो एक-दूसरे से 500 मीटर के भीतर हों। जयराम रमेश ने कहा कि भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) के प्रामाणिक आंकड़ों के अनुसार, केवल 8.7 प्रतिशत अरावली पहाड़ियां ही 100 मीटर से अधिक ऊंची हैं।
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उन्होंने चेतावनी दी कि इसका सीधा मतलब यह है कि 90 प्रतिशत से ज्यादा अरावली क्षेत्र नए नियमों के तहत संरक्षित नहीं रहेंगे और वहां खनन, निर्माण व अन्य गतिविधियां शुरू हो सकती हैं, जिससे पहले से ही क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी तंत्र को और नुकसान पहुंचेगा। रमेश ने कहा कि इस सच्चाई को छिपाया नहीं जा सकता।
कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार प्रदूषण मानकों में ढील, पर्यावरण और वन कानूनों को कमजोर करने, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) जैसी संस्थाओं को निष्प्रभावी करने जैसे कदमों के जरिए पर्यावरणीय संतुलन पर लगातार हमला कर रही है।
हालांकि, अरावली की नई परिभाषा को लेकर विवाद के बाद केंद्र सरकार ने बुधवार को राज्यों को पर्वत श्रृंखला के भीतर नए खनन पट्टे देने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के निर्देश जारी किए। साथ ही पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) को अरावली क्षेत्र में अतिरिक्त ऐसे इलाकों की पहचान करने को कहा है, जहां खनन पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।