केरल के कुट्टनाड धान क्षेत्रों में मिट्टी में एल्युमिनियम का खतरनाक स्तर, फसल और किसानों की आजीविका पर संकट
कुट्टनाड के धान खेतों में मिट्टी परीक्षण में एल्युमिनियम सुरक्षित सीमा से 165 गुना तक अधिक पाया गया, जिससे फसल उत्पादन और किसानों की आजीविका पर गंभीर खतरा है।
केरल के ‘चावल के कटोरे’ के नाम से प्रसिद्ध कुट्टनाड क्षेत्र में धान के खेतों की मिट्टी में एल्युमिनियम का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ गया है। हाल ही में किए गए मिट्टी परीक्षणों में यह सामने आया है कि एल्युमिनियम की मात्रा सुरक्षित सीमा से कई गुना अधिक है, जिससे फसल उत्पादन, मिट्टी की गुणवत्ता और किसानों की आजीविका पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है।
केरल सेंटर फॉर पेस्ट मैनेजमेंट (KCPM) द्वारा कुट्टनाड और अपर कुट्टनाड के विभिन्न इलाकों से एकत्र किए गए मिट्टी के नमूनों का परीक्षण केरल कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत विट्टिला स्थित राइस रिसर्च स्टेशन में किया गया। विश्लेषण में एल्युमिनियम की सांद्रता 77.51 पार्ट्स पर मिलियन (ppm) से लेकर 334.10 ppm तक पाई गई। यह मात्रा धान की खेती के लिए निर्धारित सुरक्षित सीमा दो ppm (या दो मिलीग्राम प्रति किलोग्राम मिट्टी) से लगभग 39 से 165 गुना अधिक है।
विशेषज्ञों का कहना है कि मिट्टी में बढ़ती अम्लीयता (एसिडिटी) एल्युमिनियम के घुलनशील रूप को बढ़ावा देती है, जिससे पौधों की जड़ों को नुकसान पहुंचता है। इसका सीधा असर धान की बढ़वार, पोषक तत्वों के अवशोषण और अंततः पैदावार पर पड़ता है। लंबे समय तक यह स्थिति बनी रहने पर कुट्टनाड की पारंपरिक धान खेती पर गहरा असर पड़ सकता है।
कृषि वैज्ञानिकों और स्थानीय संगठनों ने राज्य सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। उनकी राय में मिट्टी सुधार कार्यक्रम, चूना (लाइमिंग) का वैज्ञानिक उपयोग, और सतत कृषि पद्धतियों को अपनाना जरूरी है ताकि मिट्टी की अम्लीयता कम की जा सके और एल्युमिनियम के दुष्प्रभावों से फसलों को बचाया जा सके।
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