दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश: निजी स्कूलों की फीस केवल लाभउन्मुख बढ़ोतरी रोकने के लिए नियंत्रित की जा सकती है
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि DoE निजी स्कूलों की फीस केवल लाभउन्मुख बढ़ोतरी रोकने के लिए नियंत्रित कर सकता है, जबकि स्कूल अपनी संचालन लागत के अनुसार उचित फीस तय कर सकते हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में यह स्पष्ट किया कि निजी स्कूलों की फीस पर नियामक नियंत्रण केवल लाभउन्मुख (profiteering) बढ़ोतरी को रोकने के उद्देश्य से ही किया जा सकता है। अदालत ने यह निर्णय उस याचिका के संदर्भ में सुनाया, जिसमें स्कूलों की फीस बढ़ोतरी और शिक्षा की गुणवत्ता के बीच संतुलन पर विवाद था।
हाईकोर्ट ने कहा कि निर्देशालय ऑफ एजुकेशन (DoE) का उद्देश्य केवल यह सुनिश्चित करना है कि स्कूल अपने शैक्षणिक मानकों को बनाए रखते हुए फीस में अनुचित लाभ न कमाएं। अदालत ने स्पष्ट किया कि DoE स्कूलों की वित्तीय स्वतंत्रता को पूरी तरह समाप्त नहीं कर सकता, बल्कि उसका दायित्व केवल यह है कि छात्र और अभिभावकों को अत्यधिक वित्तीय दबाव न पड़े।
अदालत ने यह भी कहा कि निजी स्कूलों के पास अधिकार है कि वे अपनी परिचालन लागत, शिक्षक वेतन, इन्फ्रास्ट्रक्चर और अन्य खर्चों के आधार पर उचित फीस तय करें, बशर्ते कि इसमें अनुचित लाभ शामिल न हो। उच्च न्यायालय ने यह रेखांकित किया कि शिक्षा केवल व्यवसाय नहीं है, लेकिन स्कूलों को संचालन योग्य रहना भी जरूरी है।
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इस आदेश से दिल्ली के निजी स्कूलों और अभिभावकों दोनों को स्पष्ट दिशा-निर्देश मिल गए हैं। स्कूल फीस बढ़ाने के लिए DoE की अनुमति तब ही आवश्यक होगी, जब यह सुनिश्चित करना हो कि फीस बढ़ोतरी केवल स्कूल के संचालन लागत और आवश्यक सुधारों के लिए है, न कि लाभ कमाने के उद्देश्य से।
अदालत का यह फैसला शिक्षा और वित्तीय न्याय के बीच संतुलन बनाए रखने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
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