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दक्षिण बंगाल के खंडित आवासों में हाथियों में बढ़ा तनाव : अध्ययन

दक्षिण बंगाल में अध्ययन से पता चला कि खंडित आवासों में हाथियों में तनाव का स्तर बढ़ रहा है, जिससे उनके स्वास्थ्य और मानव-हाथी संघर्ष दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

दक्षिण बंगाल में हाथियों पर किए गए एक नए अध्ययन से पता चला है कि खंडित और असंगठित आवासों में रहने वाले हाथियों में तनाव का स्तर अधिक पाया गया है। यह अध्ययन वन्यजीव संरक्षण विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं की टीम द्वारा किया गया, जिसमें हाथियों के मल के नमूनों के जरिए कॉर्टिसोल हार्मोन का विश्लेषण किया गया। कॉर्टिसोल का स्तर प्रायः तनाव का वैज्ञानिक संकेतक माना जाता है।

शोध में सामने आया कि जिन क्षेत्रों में हाथियों के प्राकृतिक मार्ग और जंगल लगातार मानव बस्तियों, कृषि गतिविधियों और औद्योगिक परियोजनाओं से कट रहे हैं, वहां हाथियों को भोजन और पानी की तलाश में लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। इन परिस्थितियों के चलते उनका मनोवैज्ञानिक और शारीरिक तनाव काफी बढ़ जाता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति केवल हाथियों के स्वास्थ्य को ही प्रभावित नहीं कर रही, बल्कि मानव-हाथी संघर्ष की घटनाओं को भी बढ़ा रही है। जब हाथी भोजन की तलाश में गांवों और खेतों में प्रवेश करते हैं, तो फसलों का नुकसान होता है और कभी-कभी हिंसक टकराव भी देखने को मिलता है। इससे स्थानीय समुदायों और वन्यजीवों दोनों के लिए खतरा बढ़ जाता है।

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अध्ययन में यह भी सुझाव दिया गया है कि हाथियों के लिए संरक्षित गलियारे (corridors) सुनिश्चित किए जाएं और जंगलों को पुनर्स्थापित करने के प्रयास तेज किए जाएं। साथ ही स्थानीय स्तर पर जागरूकता और सह-अस्तित्व की रणनीतियां अपनाना भी जरूरी है, ताकि मानव और वन्यजीव दोनों सुरक्षित रह सकें।

यह शोध वन्यजीव संरक्षण नीतियों के लिए महत्वपूर्ण है और नीति-निर्माताओं को यह संदेश देता है कि यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो हाथियों की आबादी और उनके प्राकृतिक व्यवहार पर गंभीर असर पड़ सकता है।

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