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बस्तर की अनंत आदिवासी धड़कनें: बायसन हॉर्न मारिया नृत्य में जीवित है गोंडवाना की विरासत

बस्तर का बायसन हॉर्न मारिया नृत्य डंडामी मड़िया जनजाति की पहचान और प्राचीन गोंडवाना संस्कृति का जीवंत प्रतीक है, जो आधुनिक प्रभावों के बावजूद आज भी कायम है।

छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के मुख्यालय जगदलपुर में प्रवेश करते ही पर्यटकों का स्वागत बायसन हॉर्न मारिया नर्तकों की विशाल प्रतिमा करती है। यह भव्य मूर्ति केवल एक स्थापत्य संरचना नहीं, बल्कि बस्तर क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान, गर्व और डंडामी मड़िया समुदाय की सदियों पुरानी विरासत का प्रतीक है। यह दृश्य आगंतुकों को तुरंत यह एहसास कराता है कि वे एक ऐसे भूभाग में कदम रख रहे हैं, जहां परंपराएं आज भी जीवित और सशक्त हैं।

डंडामी मड़िया, जिन्हें मड़िया भी कहा जाता है, दक्षिणी छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर को लंबे समय से आकार देते आए हैं। दर्भा, टोकापाल, लोहंडीगुड़ा और दंतेवाड़ा जैसे इलाकों में फैली उनकी बस्तियां आज भी जंगलों से गहरे तौर पर जुड़ी हुई हैं। यहां का जीवन, आजीविका और आस्थाएं प्रकृति के साथ घनिष्ठ संबंध में विकसित हुई हैं। जंगल न केवल भोजन और संसाधनों का स्रोत हैं, बल्कि उनकी परंपराओं, विश्वासों और सामाजिक संरचना का भी अभिन्न हिस्सा हैं।

बायसन हॉर्न मारिया नृत्य डंडामी मड़िया समुदाय की सबसे विशिष्ट लोककला मानी जाती है। इस नृत्य में कलाकार सिर पर बायसन के सींग जैसे मुकुट पहनते हैं और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की लय पर सामूहिक नृत्य प्रस्तुत करते हैं। यह नृत्य प्राचीन गोंडवाना सभ्यता की स्मृतियों को संजोए हुए है, जिसमें सामुदायिक एकता, वीरता और प्रकृति के प्रति सम्मान झलकता है।

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आधुनिकता और बाहरी प्रभावों के बावजूद, यह कला आज भी जीवित है और पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ रही है। बायसन हॉर्न मारिया नृत्य डंडामी मड़िया समुदाय की पहचान और जीवंत सांस्कृतिक आत्मा की पुष्टि करता है।

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