संसदीय समिति की रिपोर्ट: प्रणालीगत चुनौतियाँ IBC की पूर्ण क्षमता को कमजोर कर रही हैं
संसदीय समिति ने कहा कि IBC ने व्यापार सुगमता बढ़ाई है, लेकिन आवेदन स्वीकारने में देरी और प्रणालीगत चुनौतियाँ इसकी क्षमता सीमित करती हैं। अब तक 1,194 कंपनियाँ सफलतापूर्वक हल हुई हैं।
संसदीय स्थायी वित्त समिति ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा है कि दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) ने भारत में Ease of Doing Business को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन इसके बावजूद कई स्थायी और प्रणालीगत चुनौतियाँ इसकी पूर्ण क्षमता को प्रभावित कर रही हैं।
मंगलवार को संसद में प्रस्तुत रिपोर्ट ‘इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड के कार्य की समीक्षा और उभरते मुद्दे’ में समिति ने कहा कि IBC की प्रभावशीलता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि अब तक इसकी प्रक्रिया के तहत 1,194 कंपनियों का सफल समाधान किया जा चुका है।
हालांकि, समिति ने विशेष रूप से इस तथ्य पर चिंता जताई कि दिवाला आवेदन स्वीकार करने में देरी अभी भी तेजी से मूल्य वसूली में बाधा बन रही है। प्रवेश प्रक्रिया में धीमापन न केवल मामलों के निपटान को लंबा खींचता है, बल्कि परिसंपत्तियों के मूल्य में भी गिरावट लाता है, जिससे अंततः ऋणदाताओं और उद्योग दोनों को नुकसान होता है।
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रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि IBC की कार्यप्रणाली को और प्रभावी बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सुधारों की आवश्यकता है, जिनमें समयबद्ध समाधान प्रक्रिया, न्यायाधिकरणों में पर्याप्त मानव संसाधन, तकनीकी अधोसंरचना और प्रक्रियागत स्पष्टता शामिल हैं।
समिति ने कहा कि IBC अभी भी भारत के आर्थिक तंत्र का एक मजबूत स्तंभ है, लेकिन इसकी पूर्ण क्षमता का उपयोग तभी संभव है जब प्रणालीगत कमज़ोरियों को दूर किया जाए। रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया कि तेजी और दक्षता सुनिश्चित करने के लिए सरकार को आवश्यक संशोधन, बेहतर निगरानी तंत्र और संस्थागत क्षमता में बढ़ोतरी पर ध्यान देना चाहिए।
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