भारत को कार्बन बाजार में स्थिरता तंत्र शामिल करना होगा, ताकि महंगे सुधारों से बचा जा सके: विशेषज्ञ
विशेषज्ञों ने चेताया कि यदि समय रहते सुधार न किए गए, तो भारत का कार्बन बाजार असंतुलन, कम कीमत और निवेश ठहराव जैसी समस्याओं में फंस सकता है।
भारत में कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS) वर्ष 2026 में लागू होने की तैयारी में है। इसी बीच, अमेरिका स्थित थिंक टैंक इंस्टिट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (IEEFA) और न्यूयॉर्क आधारित पर्यावरण संगठन एनवायरनमेंटल डिफेंस फंड (EDF) द्वारा संयुक्त रूप से जारी एक रिपोर्ट ने भारत को चेताया है कि यदि उसने समय पर स्थिरता तंत्र नहीं अपनाया, तो उसके कार्बन बाजार को गंभीर असंतुलन का सामना करना पड़ सकता है।
‘स्ट्रेंथेनिंग इंडिया कार्बन मार्केट’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बिना समय पर हस्तक्षेप के, भारत का कार्बन बाजार आपूर्ति और मांग के बीच संरचनात्मक असंतुलन, दबी हुई कीमतें और निवेश में ठहराव जैसी समस्याओं का शिकार हो सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत के पास अभी एक सुनहरा अवसर है कि वह शुरू से ही एक टिकाऊ और विश्वसनीय कार्बन बाजार की नींव रखे — ऐसा बाजार जो अन्य देशों की उत्सर्जन व्यापार प्रणालियों में देखी गई कमियों से बच सके।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत का कार्बन बाजार यदि बाजार स्थिरता उपकरणों (market stability tools) जैसे — कीमत सीमा, रिजर्व प्रणाली और क्रेडिट नियंत्रण उपायों — को शुरू से अपनाता है, तो यह भविष्य में महंगे सुधारों से बच सकता है।
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विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु नीति के इस महत्वपूर्ण मोड़ पर भारत को ऐसे नियम अपनाने चाहिए जो निवेशकों में विश्वास जगाए, पारदर्शिता बढ़ाए और दीर्घकालिक पर्यावरणीय लक्ष्यों के साथ आर्थिक विकास को भी सुनिश्चित करे।
यह रिपोर्ट 30 अक्टूबर, 2025 को जारी की गई थी और इसे देश के जलवायु नीति निर्माताओं के लिए “कार्रवाई की चेतावनी” के रूप में देखा जा रहा है।
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