भारत की मौन भूमिका और फिलिस्तीन से दूरी
भारत फिलिस्तीन मुद्दे पर मौन और दूरी बनाए हुए है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को न्याय, पहचान, गरिमा और मानवाधिकार के लिए स्पष्ट नेतृत्व दिखाना चाहिए।
वर्तमान वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य में फिलिस्तीन के मुद्दे पर भारत की स्थिति को लेकर व्यापक चर्चा हो रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न्याय, पहचान, गरिमा और मानवाधिकार के लिए संघर्षरत फिलिस्तीन की आवाज़ को पर्याप्त समर्थन नहीं मिलने के बीच, भारत की भूमिका को लेकर आलोचना उठ रही है।
विश्लेषकों का कहना है कि भारत, जो वैश्विक मंच पर एक प्रमुख लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में उभर रहा है, फिलिस्तीन के मुद्दे पर अपनी स्पष्ट और सक्रिय नेतृत्व क्षमता दिखाने में नाकाम रहा है। पिछले वर्षों में भारत ने इस विवाद में अपनी बात कहने में संकोच किया है और अक्सर स्थितियों से दूरी बनाकर रहा। इस प्रकार की अनिश्चितता से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर असर पड़ता है और वैश्विक मंच पर उसके नैतिक नेतृत्व की क्षमता पर सवाल उठते हैं।
फिलिस्तीन के मामले को केवल राजनीतिक संघर्ष के रूप में नहीं देखा जा सकता। यह एक न्याय, मानवाधिकार और मानवीय गरिमा का मामला भी है। ऐसे समय में भारत को चाहिए कि वह स्पष्ट रुख अपनाए, न्याय की आवाज़ उठाए और मानवीय दृष्टिकोण से अंतरराष्ट्रीय दबाव और नीतियों को संतुलित करते हुए नेतृत्व प्रदान करे।
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भारत का संतुलित लेकिन सक्रिय दृष्टिकोण न केवल क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण होगा, बल्कि यह भारतीय मूल्यों और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के अनुरूप भी होगा। इसके माध्यम से भारत वैश्विक मंच पर एक जिम्मेदार और संवेदनशील शक्ति के रूप में अपनी पहचान मजबूत कर सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि फिलिस्तीन मामले में भारत की मौन भूमिका को बदलना आवश्यक है, ताकि न्याय और मानवाधिकार की दिशा में वैश्विक प्रभाव डालने की क्षमता बनी रहे।
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