धिरौली कोयला खदान परियोजना पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश का केंद्र पर पलटवार
जयराम रमेश ने धिरौली कोयला खदान परियोजना पर केंद्र सरकार की सफाई को खारिज किया और कहा कि वनाधिकार कानून में व्यक्तिगत ही नहीं, सामुदायिक और पीवीटीजी समूहों के अधिकार भी शामिल हैं।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने धिरौली कोयला खदान परियोजना को लेकर केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने सरकार द्वारा दिए गए खंडन को पूरी तरह गलत बताया और कहा कि वनाधिकार कानून, 2006 (Forest Rights Act, 2006) केवल व्यक्तिगत वन अधिकार तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सामुदायिक वन संसाधन अधिकार (CFR) और विशेष रूप से संवेदनशील जनजातीय समूहों (PVTGs) के आवास अधिकार भी शामिल हैं।
रमेश ने कहा कि सरकार जानबूझकर इस कानून के प्रावधानों को नज़रअंदाज़ कर रही है और इसे केवल व्यक्तिगत दावों तक सीमित बताकर खदान परियोजना को वैध ठहराने की कोशिश कर रही है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब स्थानीय आदिवासी समुदायों को सामुदायिक संसाधनों और उनके पारंपरिक आवासों पर अधिकार प्राप्त हैं, तो उनकी सहमति लिए बिना परियोजना कैसे आगे बढ़ाई जा सकती है।
कांग्रेस नेता ने यह भी आरोप लगाया कि धिरौली कोयला खदान परियोजना न केवल पर्यावरण के लिए विनाशकारी है, बल्कि यह आदिवासी समूहों के जीवन, संस्कृति और आजीविका पर भी सीधा आघात करेगी। उन्होंने कहा कि इस परियोजना के जरिए सरकार आदिवासियों के वैधानिक अधिकारों को नजरअंदाज कर औद्योगिक हितों को तरजीह दे रही है।
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उन्होंने मांग की कि केंद्र सरकार को तुरंत इस परियोजना पर पुनर्विचार करना चाहिए और स्थानीय समुदायों की सहमति सुनिश्चित किए बिना किसी भी खनन कार्य को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए।
इस मुद्दे ने एक बार फिर विकास और पर्यावरण-सामाजिक संतुलन को लेकर बहस को तेज कर दिया है। विपक्ष का कहना है कि सरकार यदि वास्तव में जनजातीय समुदायों के अधिकारों का सम्मान करती है, तो उसे वनाधिकार कानून के सभी प्रावधानों का पालन करना चाहिए।
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