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काशी तमिल संगमम: भाषा विवाद से परे आस्था, संस्कृति और जुड़ाव का अनूठा संगम

काशी तमिल संगमम उत्तर और दक्षिण की संस्कृतियों का अद्भुत संगम है, जहां 1,400 प्रतिनिधि आस्था, परंपरा और सांस्कृतिक जुड़ाव का अनुभव कर रहे हैं, विवादों से दूर मानवीय संबंध मजबूत हो रहे हैं।

केंद्रीय सरकार की पहल काशी तमिल संगमम का चौथा संस्करण इस बार तमिलनाडु से आए 1,400 प्रतिनिधियों को उत्तर प्रदेश की पांच दिवसीय सांस्कृतिक और धार्मिक यात्रा पर लेकर आया है। इस दौरे में वाराणसी, बीएचयू, प्रयागराज और अयोध्या जैसे ऐतिहासिक और आध्यात्मिक स्थलों को शामिल किया गया है।

गंगा नदी पर धीमी गति से चल रही एक क्रूज़ बोट पर, एक वृद्ध व्यक्ति, जिनकी दाढ़ी पूरी तरह सफेद हो चुकी है, शंख उठाकर उसमें फूंक मारते हैं। शंख की ध्वनि गंगा के ऊपर तैरती है और घाटों से आती मंदिर की घंटियों की आवाज़ तथा “नमो नमो” जैसे भजनों के साथ मिलकर एक आध्यात्मिक माहौल बनाती है। उनके साथ मौजूद 207 तमिल प्रतिनिधि हाथ जोड़कर गंगा माता को नमन करते हैं और श्रद्धा प्रकट करते हैं।

नदी के किनारों पर लगे विशाल भगवा रंग के होर्डिंग्स पर “वनक्कम काशी” लिखा हुआ है, जिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरें भी बनी हुई हैं। यह दृश्य न सिर्फ सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रतीक है बल्कि तमिल और काशी की प्राचीन आध्यात्मिक परंपराओं के जुड़ाव को भी दर्शाता है।

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भाषा विवादों और राजनीतिक चर्चाओं से दूर, यह संगमम लोगों के बीच साझी विरासत, आध्यात्मिक अनुभव और मानवीय संबंधों को मजबूत करने का माध्यम बन रहा है। तमिलनाडु से आए कई प्रतिनिधि कहते हैं कि यह यात्रा उनके लिए सिर्फ एक धार्मिक अनुभव नहीं, बल्कि उत्तर और दक्षिण की संस्कृतियों के बीच गहरे संबंधों को महसूस करने का अवसर है। गंगा की लहरों, काशी की पुरातनता और तमिल परंपराओं के मिलन ने इस आयोजन को एक जीवंत सांस्कृतिक उत्सव में बदल दिया है।

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