मानसा के किसान ने पराली से रची सफलता की कहानी: रासायन-मुक्त खेती से 20% अधिक आय और अंतरराष्ट्रीय पहचान
पंजाब के किसान सुखजीत सिंह ने पराली का सही उपयोग कर रासायन-मुक्त खेती अपनाई, लागत घटाई और 20% अधिक आय हासिल करते हुए अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई।
पंजाब के मानसा जिले के बिरोके कलां गांव के किसान सुखजीत सिंह (38) ने यह साबित कर दिया है कि पराली जलाने के बजाय उसका सही उपयोग किस तरह किसानों की किस्मत बदल सकता है। उन्होंने अपने आठ एकड़ खेत को टिकाऊ और रासायन-मुक्त कृषि का मॉडल बना दिया है। 2013 से, उन्होंने अपने भाई के साथ पराली प्रबंधन और प्राकृतिक खेती को अपनाया है, जिससे खेती की लागत 40-50 प्रतिशत तक घट गई है और मिट्टी की उर्वरता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
पंजाब विश्वविद्यालय के स्नातक सुखजीत ने 2012 की एक दर्दनाक घटना के बाद यह रास्ता चुना। उन्होंने बताया, “मैंने देखा कि पराली जलाने से खेतों में उपयोगी कीट नष्ट हो रहे थे। इससे भी ज्यादा दुखद यह था कि मेरे भाई के नवजात पुत्र को जन्मजात बीमारी हो गई। डॉक्टरों ने बताया कि इसका कारण मिट्टी में पोषक तत्वों की भारी कमी थी, जो अत्यधिक रासायनिक खादों और कीटनाशकों के इस्तेमाल से हुई थी।”
सुखजीत अब पराली को जला कर बर्बाद नहीं करते, बल्कि उसे खेतों में मल्चिंग के रूप में उपयोग करते हैं। वह गेहूं, धान, बाजरा, दालें और हल्दी जैसी फसलों में इस तकनीक का प्रयोग करते हैं। इससे उनकी उपज में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है—खासकर हल्दी की फसल में 20% तक अधिक उत्पादन मिला है।
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आज सुखजीत सिंह की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो चुकी है। उन्हें हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में आमंत्रित किया गया, जहां उन्होंने अपनी टिकाऊ कृषि तकनीकें साझा कीं।
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