नया रोजगार कानून सामाजिक सुरक्षा से पीछे हटना नहीं, बल्कि सुधार की पहल
VB-G RAM G विधेयक ग्रामीण परिवारों को 125 दिनों के रोजगार की कानूनी गारंटी और बेरोजगारी भत्ता देता है, साथ ही रोजगार को टिकाऊ सार्वजनिक परिसंपत्तियों से जोड़ता है।
कल्याणकारी सुधारों को लेकर सार्वजनिक बहस न केवल जरूरी है, बल्कि यह एक स्वस्थ लोकतंत्र का संकेत भी है। विकसित भारत–गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) यानी VB-G RAM G को लेकर कुछ तबकों में जो चिंताएं सामने आई हैं, वे एक वास्तविक आशंका से जुड़ी हैं। यह आशंका है कि रोजगार गारंटी जैसे ऐतिहासिक कानून में किसी भी तरह का बदलाव, वर्षों की मेहनत से हासिल श्रमिक अधिकारों को कमजोर कर सकता है। इस चिंता का सम्मान किया जाना चाहिए। लेकिन साथ ही यह भी आवश्यक है कि विधेयक के वास्तविक प्रावधानों को पूर्वधारणाओं के बजाय गहराई से समझा जाए।
VB-G RAM G विधेयक की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि यह प्रत्येक ग्रामीण परिवार को साल में 125 दिनों के मजदूरी-आधारित रोजगार की वैधानिक गारंटी देता है। यह प्रावधान स्पष्ट रूप से आजीविका की सुरक्षा को कानून के दायरे में लाता है। इसके साथ ही, यदि आवेदन के 15 दिनों के भीतर रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तो बेरोजगारी भत्ता देने का भी प्रावधान किया गया है। इसके लिए मनरेगा काल की उन अपात्रता शर्तों को हटाया गया है, जिनके कारण कई बार पात्र लोगों को लाभ नहीं मिल पाता था।
इस विधेयक की एक आलोचना यह की जा रही है कि यह रोजगार की तुलना में परिसंपत्ति निर्माण को प्राथमिकता देता है। हालांकि, विधेयक रोजगार को उत्पादक और टिकाऊ सार्वजनिक परिसंपत्तियों के निर्माण से जोड़ता है, ताकि केवल अस्थायी काम के बजाय लंबे समय तक उपयोगी ढांचे तैयार किए जा सकें। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क, जल संरचना, सिंचाई और अन्य बुनियादी सुविधाओं का विकास होगा, जो आगे चलकर रोजगार के नए अवसर भी पैदा करेंगे।
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भारत की ग्रामीण रोजगार व्यवस्था की कमजोरी कभी उसके उद्देश्य में नहीं रही, बल्कि उसकी संरचनात्मक कमियों में रही है। समय पर काम न मिलना, भुगतान में देरी और काम की उत्पादकता जैसी समस्याएं लंबे समय से सामने आती रही हैं। नया रोजगार कानून इन्हीं खामियों को दूर करने और सामाजिक सुरक्षा को अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में एक सुधारात्मक कदम के रूप में देखा जा रहा है।
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