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संसदीय समिति समानांतर चुनावों पर अर्थशास्त्रियों से करेगी विचार-विमर्श

संसदीय समिति समानांतर चुनावों के आर्थिक प्रभावों की समीक्षा के लिए अर्थशास्त्रियों से मिलेगी। समिति का मानना है कि इससे चुनावी खर्च घटेगा, पर क्रियान्वयन में कई चुनौतियाँ सामने आएंगी।

संसदीय समिति अब समानांतर चुनावों (Simultaneous Polls) के विषय पर गहन विचार-विमर्श के लिए अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों से मिलने जा रही है। समिति के अध्यक्ष और वरिष्ठ भाजपा नेता पी. पी. चौधरी ने जानकारी दी कि समिति का मुख्य उद्देश्य समानांतर चुनावों के आर्थिक प्रभावों की समीक्षा करना है।

भारत में लंबे समय से समानांतर चुनावों को लेकर बहस चल रही है। विचार यह है कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं, जिससे बार-बार होने वाले चुनावों पर लगने वाले भारी खर्च को कम किया जा सके। इसके अलावा, बार-बार की चुनावी प्रक्रिया से प्रशासन और विकास कार्यों पर पड़ने वाले प्रभाव को भी कम करने का प्रयास किया जाएगा।

समिति का मानना है कि यदि चुनाव एक साथ कराए जाते हैं तो इससे न केवल सरकारी खर्च घटेगा, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा। हालांकि, इसके क्रियान्वयन में कई चुनौतियाँ भी हैं, जैसे संवैधानिक बदलाव, राज्यों की राजनीतिक परिस्थितियाँ और चुनावी व्यवस्थाओं की व्यावहारिक जटिलताएँ।

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अर्थशास्त्रियों से मुलाकात के माध्यम से समिति यह समझने का प्रयास करेगी कि समानांतर चुनावों का देश की वित्तीय स्थिति, रोजगार, विकास योजनाओं और आम जनता पर क्या असर पड़ेगा। इस चर्चा से समिति को अपने सुझाव और रिपोर्ट तैयार करने में मदद मिलेगी, जो आगे संसद और सरकार को सौंपी जाएगी।

समानांतर चुनावों को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों और विशेषज्ञों के बीच मतभेद हैं। जहां कुछ इसे सकारात्मक कदम मानते हैं, वहीं अन्य दल इसे लोकतांत्रिक विविधता और संघीय ढांचे के लिए चुनौतीपूर्ण बताते हैं।

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