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राष्ट्रपति संदर्भ सुनवाई: राजनीतिक इच्छा का प्रतीक है विधेयक – अधिवक्ता पी. विल्सन

सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति संदर्भ सुनवाई में अधिवक्ता पी. विल्सन ने विधेयक को राजनीतिक इच्छा बताया। सीजेआई गवई ने कहा, राज्यपालों को सरकार के सच्चे मार्गदर्शक और दार्शनिक बनना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट में चल रही राष्ट्रपति संदर्भ मामले की सुनवाई के दौरान अधिवक्ता पी. विल्सन ने दलील दी कि प्रस्तुत विधेयक महज़ राजनीतिक इच्छा का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के विधेयक संवैधानिक मूल्यों की जगह केवल राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए तैयार किए जाते हैं।

पी. विल्सन का तर्क था कि जब सरकारें इस तरह के विधेयकों को लाती हैं, तो उसका मकसद कानून की स्थिरता और जनता के हितों की बजाय सत्ता की राजनीतिक प्राथमिकताओं को साधना होता है। उन्होंने कहा कि विधेयक को केवल एक "राजनीतिक इच्छा" के दस्तावेज़ के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि एक स्थायी संवैधानिक व्यवस्था के रूप में।

इससे पहले, 9 सितंबर 2025 को हुई सुनवाई में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने टिप्पणी की थी कि राज्यपालों को राज्य सरकारों के लिए “सच्चे मार्गदर्शक और दार्शनिक” के रूप में कार्य करना चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि राज्यपाल का दायित्व संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करना और लोकतांत्रिक संस्थाओं के सुचारु संचालन में सहयोग करना है।

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मुख्य न्यायाधीश की यह टिप्पणी राज्यपालों की भूमिका और उनकी राजनीतिक निष्पक्षता पर चल रही बहस के बीच महत्वपूर्ण मानी जा रही है। राष्ट्रपति संदर्भ की इस सुनवाई में अदालत यह स्पष्ट करेगी कि राज्यपाल और सरकार के बीच शक्ति संतुलन किस प्रकार कायम होना चाहिए और संवैधानिक प्रावधानों की सही व्याख्या क्या है।

इस मामले की अगली सुनवाई में अदालत से अपेक्षा है कि वह इस प्रश्न पर ठोस मार्गदर्शन देगी कि क्या विधेयक वास्तव में संवैधानिक आवश्यकता है या केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रतिबिंब।

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