RSS-BJP पोस्ट के अगले दिन दिग्विजय सिंह पर राहुल गांधी की हल्की-फुल्की चुटकी, बोले—कल आपने बदमाशी कर दी
RSS-BJP की तारीफ वाले पोस्ट के बाद राहुल गांधी ने दिग्विजय सिंह से मज़ाक में “बदमाशी” कहकर टिप्पणी की। कांग्रेस स्थापना दिवस पर नेताओं ने पार्टी की वैचारिक मजबूती पर ज़ोर दिया।
RSS-BJP की संगठनात्मक ताकत की सराहना वाले पोस्ट को लेकर मचे राजनीतिक विवाद के एक दिन बाद कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह और राहुल गांधी आमने-सामने नजर आए। यह मुलाकात कांग्रेस स्थापना दिवस के मौके पर पार्टी मुख्यालय इंदिरा भवन में हुई, जहां माहौल अपेक्षाकृत हल्का और अनौपचारिक दिखा।
सूत्रों के अनुसार, राहुल गांधी ने दिग्विजय सिंह से हाथ मिलाते हुए मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, “कल आपने बदमाशी कर दी।” राहुल की इस टिप्पणी पर वहां मौजूद नेताओं के बीच हंसी गूंज उठी, जिनमें सोनिया गांधी भी शामिल थीं। स्थापना दिवस समारोह के बाद पार्टी मुख्यालय में चाय-नाश्ते का आयोजन किया गया था, इसी दौरान दोनों नेताओं के बीच यह बातचीत हुई।
इससे करीब 24 घंटे पहले दिग्विजय सिंह ने मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक पुरानी तस्वीर साझा की थी, जिसमें वे लालकृष्ण आडवाणी के साथ नजर आ रहे थे। अपने पोस्ट में दिग्विजय सिंह ने RSS और जनसंघ-भाजपा के संगठनात्मक ढांचे की तारीफ करते हुए लिखा था कि किस तरह ज़मीनी स्तर का कार्यकर्ता मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक बना। उन्होंने इसे “संगठन की ताकत” बताया था।
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हालांकि, पोस्ट के बाद कांग्रेस के भीतर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। दिग्विजय सिंह ने बाद में सफाई देते हुए कहा कि वे RSS या प्रधानमंत्री मोदी की विचारधारा का समर्थन नहीं करते, बल्कि केवल संगठनात्मक क्षमता की बात कर रहे थे। इसके बावजूद पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा ने इस बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी और कहा कि गांधी की विचारधारा को गोडसे की विचारधारा से सीखने की ज़रूरत नहीं है।
कांग्रेस स्थापना दिवस के अवसर पर पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी बिना नाम लिए ऐसे नेताओं को संदेश दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस कमजोर जरूर हो सकती है, लेकिन उसने संविधान, धर्मनिरपेक्षता और गरीबों के अधिकारों से कभी समझौता नहीं किया। खरगे ने ज़ोर देकर कहा कि कांग्रेस ने कभी धर्म के नाम पर राजनीति नहीं की, जबकि भाजपा समाज को बांटने का काम करती है।
इस पूरे घटनाक्रम ने कांग्रेस के भीतर वैचारिक स्पष्टता और संगठनात्मक बहस को एक बार फिर चर्चा के केंद्र में ला दिया है।
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