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2002 गुजरात नरसंहार एक अलग स्तर का सांप्रदायिक हिंसा था, जिसने मुझे झकझोर दिया: फिल्ममेकर राकेश शर्मा

राकेश शर्मा ने IDSFFK 2025 में कहा कि 2002 गुजरात नरसंहार ने उन्हें गहराई तक झकझोर दिया। राहत शिविरों से डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाने तक उनकी यात्रा ने सांप्रदायिक हिंसा को उजागर किया।

फिल्ममेकर राकेश शर्मा ने IDSFFK 2025 में अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि 2002 के गुजरात नरसंहार ने उन्हें गहराई तक झकझोर दिया। उन्होंने इसे “सांप्रदायिक हिंसा का एक अलग स्तर” बताया, जिसने उनके जीवन और सोच पर स्थायी प्रभाव डाला।

राकेश शर्मा ने अपनी यात्रा की शुरुआत राहत शिविरों से की, जहाँ उन्होंने प्रभावित लोगों की वास्तविक स्थितियों का सामना किया। वहां लोगों की व्यथा, दुख और पीड़ा ने उन्हें डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि वास्तविक घटनाओं को कैमरे में कैद करना और लोगों की आवाज़ को दुनिया तक पहुँचाना उनका मकसद रहा।

शर्मा की फिल्में केवल घटनाओं का चित्रण नहीं करतीं, बल्कि समाज में सांप्रदायिक हिंसा के प्रभाव और उसके परिणामों को गहराई से समझने का अवसर देती हैं। उनकी डॉक्यूमेंट्रीज़ में यह दिखाया गया है कि कैसे हिंसा प्रभावित समुदायों की जीवनशैली, मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक संरचना को बदल देती है।

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IDSFFK 2025 में उन्होंने यह भी बताया कि कैसे डॉक्यूमेंट्री फिल्मिंग के माध्यम से उन्होंने समाज में जागरूकता फैलाने की कोशिश की। राकेश का मानना है कि कला और मीडिया का सही इस्तेमाल करके सांप्रदायिक हिंसा, असमानता और सामाजिक अन्याय जैसे मुद्दों पर लोगों को संवेदनशील बनाया जा सकता है।

विशेषज्ञों के अनुसार, राकेश शर्मा की फिल्में भारतीय डॉक्यूमेंट्री फिल्म इंडस्ट्री में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं और सांप्रदायिक हिंसा जैसी संवेदनशील घटनाओं के दस्तावेजीकरण में नए मानक स्थापित करती हैं।

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