दूसरे बच्चे के लिए सरोगेसी पर रोक: सुप्रीम कोर्ट करेगा जांच, क्या यह निजी स्वतंत्रता में सरकारी हस्तक्षेप है?
सुप्रीम कोर्ट यह जांच करेगा कि दूसरे बच्चे के लिए सरोगेसी पर रोक नागरिकों की प्रजनन स्वतंत्रता में सरकारी दखल है या नहीं। केंद्र ने इसे संवैधानिक बताया।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (4 नवंबर 2025) को यह तय किया कि वह यह जांच करेगा कि दूसरे बच्चे के लिए सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाना क्या नागरिकों की निजी स्वतंत्रता और प्रजनन अधिकारों में राज्य का अनुचित हस्तक्षेप है।
यह मामला सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 की धारा 4(iii)(C)(II) से जुड़ा है, जिसमें कहा गया है कि विवाहित दंपती केवल तब सरोगेसी का सहारा ले सकते हैं जब उनके पास कोई संतान न हो। यानी, जो दंपती पहले से एक बच्चे के माता-पिता हैं, वे सरोगेसी से दूसरा बच्चा नहीं पा सकते।
याचिकाकर्ता ने इस प्रावधान को भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक बताया है। उनका कहना है कि सेकेंडरी इंफर्टिलिटी यानी दूसरी बार गर्भधारण में असमर्थता एक भावनात्मक और चिकित्सकीय रूप से चुनौतीपूर्ण स्थिति है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में कोई एक-बच्चा नीति (One-Child Policy) नहीं है, इसलिए ऐसा कानून व्यक्तिगत जीवन के अधिकार और परिवार नियोजन की स्वतंत्रता पर सीधा असर डालता है।
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वहीं, केंद्र सरकार ने इस प्रावधान का बचाव करते हुए कहा कि सरोगेसी को मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता। सरकार ने तर्क दिया कि यह प्रक्रिया किसी अन्य महिला के गर्भाशय के उपयोग से जुड़ी होती है, इसलिए इसे केवल अंतिम विकल्प के रूप में अपनाया जाना चाहिए, जब प्राकृतिक गर्भधारण या अन्य सहायक प्रजनन तकनीक (ART) के सभी प्रयास विफल हो जाएं।
सुप्रीम कोर्ट अब यह तय करेगा कि क्या यह कानूनी रोक नागरिकों की निजी स्वतंत्रता और प्रजनन निर्णयों में असंवैधानिक हस्तक्षेप है।
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