भारत में बाल तस्करी और व्यावसायिक यौन शोषण बेहद चिंताजनक सच्चाई: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में बाल तस्करी और बच्चों का व्यावसायिक यौन शोषण गंभीर सच्चाई है और पीड़ित बच्चों को घायल गवाह मानकर संवेदनशीलता से न्याय दिया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (19 दिसंबर 2025) को दिए अपने एक अहम फैसले में कहा कि भारत में बाल तस्करी और बच्चों का व्यावसायिक यौन शोषण एक “बेहद चिंताजनक सच्चाई” है, जो सख्त और सुरक्षात्मक कानूनों के बावजूद लगातार फल-फूल रही है। शीर्ष अदालत ने संगठित गिरोहों द्वारा बच्चों के शोषण पर गहरी चिंता जताते हुए इसे समाज और न्याय व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती बताया।
न्यायालय ने कहा कि बाल तस्करी से जुड़े नेटवर्क अत्यंत जटिल और बहुस्तरीय संरचना में काम करते हैं। ये गिरोह बच्चों की भर्ती, उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने, छिपाकर रखने और अंततः उनके शोषण तक की पूरी प्रक्रिया को सुनियोजित तरीके से अंजाम देते हैं। अदालत के अनुसार, इन अपराधों में कई स्तरों पर लोग शामिल होते हैं, जिससे पीड़ित बच्चों को न्याय दिलाना और दोषियों को सजा देना और भी कठिन हो जाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि तस्करी का शिकार हुए बच्चों की गवाही को अदालतों द्वारा हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। यदि किसी बच्चे के बयान में मामूली विरोधाभास या असंगतियां हों, तो केवल इसी आधार पर उसकी गवाही को अविश्वसनीय नहीं ठहराया जा सकता। अदालत ने कहा कि ऐसे बच्चों को अपराध में सहभागी नहीं, बल्कि “घायल गवाह” के रूप में देखा जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने निचली अदालतों और जांच एजेंसियों को निर्देश दिया कि वे बाल तस्करी के मामलों में अत्यधिक संवेदनशीलता और मानवीय दृष्टिकोण अपनाएं। बच्चों के बयान दर्ज करते समय उनके मानसिक और भावनात्मक हालात को समझना बेहद जरूरी है।
फैसले में यह भी रेखांकित किया गया कि बाल तस्करी और यौन शोषण के मामलों से निपटने के लिए केवल कानून ही पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि समाज, प्रशासन और न्याय प्रणाली को मिलकर ठोस कदम उठाने होंगे। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, जब तक इन संगठित अपराधों की जड़ों पर प्रहार नहीं किया जाएगा, तब तक मासूम बच्चों का शोषण रुकना मुश्किल है।