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न्यायमूर्ति श्रीधरन के तबादले पर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के रुख में बदलाव से न्यायिक स्वतंत्रता पर कार्यपालिका के प्रभाव को लेकर उठे सवाल

सरकार के अनुरोध पर न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन के तबादले पर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का रुख बदलने से न्यायिक स्वतंत्रता और कार्यपालिका के प्रभाव को लेकर सवाल उठे हैं।

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन के तबादले को लेकर हालिया रुख बदलने से एक बार फिर न्यायिक स्वतंत्रता पर कार्यपालिका के प्रभाव को लेकर बहस छिड़ गई है। कॉलेजियम ने पहले न्यायमूर्ति श्रीधरन को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट भेजने की सिफारिश की थी, लेकिन केंद्र सरकार के आग्रह पर अब उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट स्थानांतरित करने की अनुशंसा की गई है।

14 अक्टूबर को जारी कॉलेजियम का संक्षिप्त प्रस्ताव इस बदलाव का स्पष्ट कारण नहीं बताता। इसमें केवल इतना कहा गया कि यह निर्णय सरकार द्वारा “पुनर्विचार के अनुरोध” के बाद लिया गया है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं किया गया कि केंद्र सरकार न्यायमूर्ति श्रीधरन को छत्तीसगढ़ क्यों नहीं भेजना चाहती थी। अगर वह छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में नियुक्त होते, तो वे वहां की कॉलेजियम का हिस्सा बनकर भविष्य के न्यायाधीशों की नियुक्ति में भूमिका निभा सकते थे।

कॉलेजियम ने 25 और 26 अगस्त की बैठकों में न्यायमूर्ति श्रीधरन सहित 14 उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के तबादले या पुनः नियुक्ति की अनुशंसा की थी, जिसमें श्रीधरन का नाम सबसे ऊपर था। अब कॉलेजियम के इस बदलाव को लेकर न्यायिक हलकों में पारदर्शिता और स्वतंत्रता को लेकर चिंता जताई जा रही है।

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कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार के आग्रह पर कॉलेजियम अपने निर्णयों में संशोधन करती है, तो यह संविधान में स्थापित शक्ति पृथक्करण और न्यायपालिका की स्वायत्तता के सिद्धांत को कमजोर करता है।

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