दृष्टिबाधितों को न्यायिक सेवा में अवसर देने के आदेश पर अमल के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को चार महीने का समय दिया
सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को दृष्टिबाधितों को न्यायिक सेवाओं में अवसर देने के आदेश के पालन हेतु चार महीने का समय दिया, कहा—भेदभाव मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को अपने उस फैसले को लागू करने के लिए चार महीने का समय दिया है, जिसमें कहा गया था कि दृष्टिबाधित व्यक्तियों को न्यायिक सेवाओं में नौकरी के अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता। अदालत ने मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियमों के उन प्रावधानों को असंवैधानिक करार दिया था, जो दृष्टिबाधित उम्मीदवारों को बाहर रखते थे।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने हाईकोर्ट की ओर से पेश वकील के इस तर्क को दर्ज किया कि राज्य सरकार के साथ परामर्श कर नियमों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया जारी है। अदालत ने कहा, “मांगा गया समय दिया जाता है। मामला चार महीने बाद अनुपालन और प्रगति रिपोर्ट के लिए सूचीबद्ध किया जाए।”
शीर्ष अदालत ने यह आदेश 3 मार्च को दिए गए अपने फैसले के अनुपालन में दिया है। यह फैसला उन याचिकाओं पर आया था जिनमें कुछ राज्यों में दृष्टिबाधित और कम दृष्टि वाले उम्मीदवारों को न्यायिक सेवाओं में आरक्षण से वंचित किए जाने को चुनौती दी गई थी।
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अदालत ने कहा था, “यह समय है कि विकलांगता-आधारित भेदभाव के खिलाफ अधिकार को, जो दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम (RPwD Act) 2016 में मान्यता प्राप्त है, मौलिक अधिकार के समान दर्जा दिया जाए।”
122 पन्नों के इस निर्णय में कहा गया कि दृष्टिबाधित उम्मीदवारों को “न्यायिक सेवा के लिए अनुपयुक्त” नहीं कहा जा सकता और उन्हें चयन प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर मिलना चाहिए। कोर्ट ने नियम 6A और 7 को संविधान और समानता के सिद्धांत के विपरीत बताते हुए आंशिक रूप से निरस्त किया।
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