1996 के ड्रग जब्ती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संजीव भट्ट की सज़ा निलंबन याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने 1996 के ड्रग केस में संजीव भट्ट की 20 साल की सज़ा निलंबित करने की याचिका खारिज की। भट्ट पर वकील को झूठे केस में फंसाने का आरोप सिद्ध हुआ था।
सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व IPS अधिकारी संजीव भट्ट द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने 1996 के ड्रग जब्ती मामले में सुनाई गई 20 साल की सज़ा को निलंबित करने की मांग की थी। यह निर्णय गुरुवार (11 दिसंबर 2025) को जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की पीठ ने सुनाया। अदालत ने कहा कि वह इस मामले में हस्तक्षेप करने के पक्ष में नहीं है।
यह मामला 1996 का है जब गुजरात के बनासकांठा जिले के पलनपुर में स्थित एक होटल से ड्रग्स बरामद करने का दावा किया गया था। भट्ट उस समय बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक थे। पुलिस ने राजस्थान के वकील सुमेर सिंह राजपुरोहित को होटल से गिरफ्तार कर दावा किया था कि उनके कमरे से ड्रग्स मिले हैं।
हालांकि, बाद में राजस्थान पुलिस की जांच में यह सामने आया कि राजपुरोहित पर लगाया गया आरोप झूठा था और बनासकांठा पुलिस ने उन्हें राजस्थान के पाली जिले में स्थित एक विवादित संपत्ति को हस्तांतरित कराने के दबाव में फंसाया था।
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1999 में पूर्व पुलिस निरीक्षक आई.बी. व्यास ने इस मामले की निष्पक्ष जांच के लिए गुजरात हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। सितंबर 2018 में भट्ट को राज्य CID ने NDPS एक्ट के तहत गिरफ्तार किया और तब से वह पलनपुर सब-जेल में बंद हैं।
पिछले वर्ष भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट में यह कहते हुए मुकदमे को किसी अन्य अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की थी कि उनके मामले की सुनवाई कर रहे जज पक्षपाती हैं। उन्होंने ट्रायल कोर्ट की पूरी कार्यवाही की रिकॉर्डिंग का भी अनुरोध किया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने न केवल उनकी मांग ठुकरा दी बल्कि उन पर निचली अदालत के जज पर पक्षपात का आरोप लगाने के लिए ₹3 लाख का जुर्माना भी लगाया।