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वन भूमि का गैर-वानिकी उपयोग नहीं हो सकता, खेती भी प्रतिबंधित: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वन भूमि का खेती सहित किसी भी गैर-वानिकी उद्देश्य के लिए उपयोग नहीं हो सकता और केंद्र की मंजूरी बिना ऐसा करना वन कानून का उल्लंघन है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक हालिया फैसले में स्पष्ट किया है कि वन भूमि का उपयोग किसी भी गैर-वानिकी उद्देश्य के लिए नहीं किया जा सकता, जिसमें कृषि गतिविधियां भी शामिल हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि जंगलों को खेती या अन्य गैर-वन कार्यों के लिए इस्तेमाल करना कानून के विरुद्ध है और इससे पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य को गंभीर नुकसान पहुंचता है।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने यह टिप्पणी कर्नाटक सरकार द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए की। यह अपील गांधी जीवन कलेक्टिव फार्मिंग कोऑपरेटिव सोसाइटी के खिलाफ दायर की गई थी, जिसने 134 एकड़ वन भूमि पर खेती के लिए दी गई लीज के विस्तार की मांग की थी। अदालत के समक्ष यह तथ्य आया कि यह लीज पहले ही अवैध रूप से प्रदान की गई थी।

पीठ ने अपने फैसले में कहा कि अदालत पहले भी कई मामलों में वन भूमि के डी-रिजर्वेशन (आरक्षण समाप्त करने) पर रोक लगाने संबंधी अनिवार्य निर्देश जारी कर चुकी है। अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वन भूमि पर खेती की अनुमति देना व्यावहारिक रूप से जंगलों की कटाई के समान होगा, जो वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा 2 के सीधे तौर पर खिलाफ है।

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धारा 2 के तहत केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति के बिना किसी भी वन भूमि को गैर-वानिकी उपयोग में नहीं लाया जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि कानून का उद्देश्य केवल कागजी संरक्षण नहीं, बल्कि जंगलों की वास्तविक सुरक्षा और संरक्षण सुनिश्चित करना है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि पर्यावरण संतुलन बनाए रखने और जैव विविधता की रक्षा के लिए जंगलों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। ऐसे में किसी भी प्रकार की खेती या अन्य व्यावसायिक गतिविधियों के लिए वन भूमि के उपयोग की अनुमति नहीं दी जा सकती। इस फैसले को पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से एक महत्वपूर्ण और दूरगामी निर्णय माना जा रहा है।

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