अजमेर शरीफ दरगाह पर चादर चढ़ाने के खिलाफ तत्काल याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने पीएमओ द्वारा अजमेर शरीफ दरगाह पर चादर चढ़ाने के खिलाफ तत्काल याचिका पर सुनवाई से इनकार किया, इसे त्वरित हस्तक्षेप योग्य मामला नहीं माना।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (22 दिसंबर 2025) को प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) द्वारा अजमेर शरीफ दरगाह पर चादर चढ़ाने से रोकने की मांग वाली एक तत्काल याचिका को सूचीबद्ध करने से इनकार कर दिया। यह याचिका ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की उर्स के अवसर पर प्रधानमंत्री की ओर से चादर पेश किए जाने के प्रस्ताव के खिलाफ दाखिल की गई थी।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की विशेष अवकाश पीठ के समक्ष एक वकील ने मौखिक रूप से इस मामले का उल्लेख करते हुए त्वरित सुनवाई की मांग की। वकील ने दलील दी कि प्रधानमंत्री की ओर से औपचारिक चादर चढ़ाने से “गलत संदेश” जाएगा, खासकर तब जब अजमेर की दरगाह को लेकर एक विवादित मामला राजस्थान की एक अदालत में लंबित है।
वकील ने अदालत को बताया कि हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा दायर एक दीवानी वाद में यह घोषणा मांगी गई है कि अजमेर शरीफ दरगाह का निर्माण एक प्राचीन और पूर्व-विद्यमान शिव मंदिर — ‘भगवान श्री संकटमोचन महादेव विराजमान मंदिर’ — के ऊपर किया गया था। ऐसे में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा दरगाह पर चादर चढ़ाने की परंपरा को जारी रखना संवेदनशील स्थिति में अनुचित संदेश दे सकता है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस दलील को स्वीकार नहीं किया और मामले को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने से मना कर दिया। पीठ ने संकेत दिया कि यह एक ऐसा विषय नहीं है, जिसमें तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता हो, खासकर जब संबंधित विवाद पहले से ही निचली अदालत में विचाराधीन है।
उल्लेखनीय है कि हर वर्ष उर्स के दौरान प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की ओर से अजमेर शरीफ दरगाह पर चादर भेजने की परंपरा रही है, जिसे सांप्रदायिक सौहार्द और सम्मान के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार चादर पेश किए जाने का रास्ता साफ हो गया है।
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