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पैसों की वसूली के लिए अदालतें रिकवरी एजेंट नहीं बन सकतीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतें पैसों की वसूली के लिए रिकवरी एजेंट नहीं बन सकतीं। यूपी के एक मामले में अपहरण के आरोप के बीच अदालत ने न्यायिक प्रक्रिया की सीमाएँ स्पष्ट कीं।

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि अदालतों का काम पैसों की वसूली करना नहीं है और वे किसी भी परिस्थिति में ‘रिकवरी एजेंट’ की तरह कार्य नहीं कर सकतीं। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अदालतें कानून और न्याय के दायरे में फैसले सुनाने के लिए हैं, न कि किसी पक्ष की आर्थिक वसूली सुनिश्चित करने के लिए।

यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश से जुड़े एक आपराधिक मामले की सुनवाई के दौरान आई। मामले में आरोप था कि एक व्यक्ति ने पैसों की वसूली को लेकर अपहरण जैसे गंभीर अपराध को अंजाम दिया। इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि आर्थिक लेन-देन और विवाद का समाधान न्यायिक प्रक्रिया से होना चाहिए, न कि अपराध या दबाव डालकर।

बेंच ने कहा कि ऐसे मामलों में अदालतों की भूमिका सीमित है—वे केवल कानून के मुताबिक निर्णय दे सकती हैं। अदालतें किसी पक्ष से पैसे दिलाने या सीधे रिकवरी सुनिश्चित करने का काम नहीं कर सकतीं। यदि कोई विवाद पैसों से जुड़ा है तो उसका निपटारा दीवानी न्यायालयों या उपयुक्त कानूनी प्रक्रिया से होना चाहिए।

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सुप्रीम कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि अपराध के आरोपों की जांच और सुनवाई निष्पक्ष रूप से होनी चाहिए और इन्हें केवल आर्थिक विवादों से जोड़कर नहीं देखा जा सकता। अदालतों को यह सुनिश्चित करना होगा कि न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो।

विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी भविष्य में ऐसे मामलों के निपटारे में एक मार्गदर्शक सिद्धांत साबित हो सकती है, जहां आपराधिक मुकदमों का इस्तेमाल पैसों की वसूली के लिए किया जाता है।

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