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सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई: क्या राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए बिल निपटाने की समयसीमा तय हो सकती है?

सुप्रीम कोर्ट में पांच-न्यायाधीशीय पीठ राष्ट्रपति रेफरेंस पर सुनवाई कर रही है, जिसमें सवाल है कि क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति को विधेयक निपटाने के लिए तय समयसीमा दी जा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशीय संविधान पीठ राष्ट्रपति रेफरेंस पर सुनवाई कर रही है, जिसमें यह स्पष्ट करने की मांग की गई है कि क्या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को निपटाने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति पर निश्चित समयसीमा लागू की जा सकती है। यह सुनवाई संवैधानिक व्यवस्था में समयबद्धता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

इससे पहले, भारत के अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने अपने पक्ष में दलील दी कि राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिल निपटाने के लिए बाध्यकारी समयसीमा नहीं दी जानी चाहिए। उनका कहना था कि यह संवैधानिक पदाधिकारियों की विवेकाधीन शक्तियों पर अनावश्यक अंकुश होगा और संवैधानिक ढांचे के संतुलन को प्रभावित कर सकता है।

मंगलवार (19 अगस्त, 2025) को शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार और अटॉर्नी जनरल से इस मुद्दे पर कई सवाल पूछे। अदालत ने जानना चाहा कि यदि कोई समयसीमा तय नहीं की जाती, तो क्या इससे राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित बिलों पर निर्णय लेने में देरी और अस्थिरता पैदा नहीं होगी? अदालत ने यह भी संकेत दिया कि संवैधानिक अधिकारों के सम्मान के साथ-साथ लोकतांत्रिक प्रक्रिया की गति बनाए रखना भी आवश्यक है।

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राष्ट्रपति रेफरेंस का उद्देश्य इस संवैधानिक अस्पष्टता को दूर करना है ताकि यह तय हो सके कि राज्यपालों और राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों के निपटान में अनावश्यक देरी को रोका जा सके। सुप्रीम कोर्ट आने वाले दिनों में इस पर अपना विस्तृत निर्णय दे सकता है, जो संघीय ढांचे और विधायी प्रक्रिया पर दूरगामी असर डाल सकता है।

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