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रिश्वत और पक्षपात: तेलंगाना में भ्रष्टाचार मामलों में क्यों नहीं होता न्याय

तेलंगाना में भ्रष्टाचार मामलों की जाँच धीमी और कमजोर होने से दोषी अधिकारी बच निकलते हैं। राजनीतिक संरक्षण और नौकरशाही देरी के कारण न तो सजा होती है, न ही न्याय की उम्मीद।

तेलंगाना में भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच और अभियोजन की प्रक्रिया अक्सर इतनी धीमी और कमजोर होती है कि रिश्वतखोरी में पकड़े गए अधिकारी शायद ही कभी गंभीर सजा भुगतते हैं। कई मामलों में यह देखा गया है कि रिश्वत लेते हुए पकड़े जाने पर शुरू में भले ही बड़ा बवाल मचता है, लेकिन समय बीतने के साथ मामले ठंडे पड़ जाते हैं।

अधिकारियों के खिलाफ दर्ज भ्रष्टाचार के मामले अक्सर नौकरशाही की देरी, कमजोर जाँच और कथित ‘राजनीतिक संरक्षण’ के कारण वर्षों तक लंबित रहते हैं। इस बीच, आरोपित अधिकारी न केवल अपने पदों पर वापस लौट आते हैं, बल्कि कई बार पदोन्नत भी हो जाते हैं।

जाँच एजेंसियों की सुस्ती और अभियोजन में कमियों के कारण अधिकांश मामले अदालत तक पहुँचने से पहले ही कमजोर हो जाते हैं। राजनीतिक दबाव और प्रभाव के कारण कई बार गवाह मुकर जाते हैं या सबूत गायब हो जाते हैं। नतीजा यह होता है कि भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का डर लगभग खत्म हो जाता है।

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इस स्थिति ने एक ऐसा माहौल बना दिया है जिसमें सिस्टम भ्रष्टाचार से लड़ने का दावा तो करता है, लेकिन वास्तव में दोषियों को बचाने के लिए ढाल का काम करता है। जनता के मन में यह सवाल गहराता जा रहा है कि क्या भ्रष्टाचार के मामलों में कभी निष्पक्ष न्याय मिल पाएगा।

लवप्रीत कौर की इस पड़ताल से साफ होता है कि तेलंगाना में भ्रष्टाचार विरोधी तंत्र की कमियाँ न केवल प्रशासनिक पारदर्शिता को चोट पहुँचाती हैं, बल्कि ईमानदार अधिकारियों और जनता के विश्वास को भी कमजोर करती हैं।

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