वंदे मातरम भारत की एकता और भावनात्मक चेतना का प्रतीक है: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ‘वंदे मातरम’ की 150वीं वर्षगांठ पर कहा कि यह गीत भारत की एकता, भावना और मातृभूमि के प्रति समर्पण का प्रतीक है।
भारत के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार (7 नवंबर 2025) को कहा कि ‘वंदे मातरम’ देश की भावनात्मक चेतना और एकता का प्रतीक बना हुआ है। उन्होंने कहा कि यह गीत आज भी भारतीयों के भीतर देशभक्ति, मातृभूमि के प्रति सम्मान और एकता की भावना जगाता है।
राष्ट्रपति मुर्मू ने ‘वंदे मातरम’ की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर अपने एक्स (X) पोस्ट में लिखा, “इस अवसर पर हम सभी देशवासी यह संकल्प लें कि हम अपनी मातृभूमि भारत को ‘सुजलाम’, ‘सुफलाम’ बनाए रखेंगे, जैसा कि इस गीत की भावना में कहा गया है। वंदे मातरम।”
उन्होंने बताया कि उन्नीसवीं शताब्दी में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ हुए संन्यासी विद्रोह की पृष्ठभूमि में इस गीत की रचना की थी। यह गीत 1905 के स्वदेशी आंदोलन से लेकर आज तक स्वतंत्रता सेनानियों और राष्ट्रनिर्माताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।
राष्ट्रपति ने कहा, “यह गीत मातृभूमि के प्रति श्रद्धा और हमारे देशवासियों की भावनात्मक एकता का उद्घोष है। स्वतंत्रता के बाद भारत ने इसे सम्मानपूर्वक राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया।”
7 नवंबर 2025 को ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे हो गए। यह गीत पहली बार 7 नवंबर 1875 को साहित्यिक पत्रिका ‘बंगदर्शन’ में प्रकाशित हुआ था और बाद में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे संगीतबद्ध किया। यह गीत “मां, मैं तुझे नमन करता हूं” की भावना को साकार करता है और आज भी भारतीयता का प्रतीक है।
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