अमेरिका में हुए एक ताज़ा अध्ययन ने यह साफ कर दिया है कि सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताना अकेलेपन की समस्या को और गहरा कर सकता है। अब तक माना जाता था कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स युवा पीढ़ी को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं, लेकिन यह शोध मध्यम और वृद्ध आयु वर्ग में भी चिंताजनक तस्वीर पेश करता है।
ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी की डॉ. जेसिका गॉरमन और डॉ. ब्रायन प्रिमैक के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में 30 से 70 वर्ष आयु वर्ग के 1,500 से अधिक वयस्कों को शामिल किया गया। प्रतिभागियों से यह पूछा गया कि वे दिन में कितनी बार सोशल मीडिया देखते हैं और कुल कितना समय इन प्लेटफॉर्म्स पर बिताते हैं। परिणामों में सामने आया कि चाहे लोग बार-बार सोशल मीडिया चेक करें या लंबे समय तक उस पर बने रहें, दोनों ही स्थितियों में अकेलेपन की संभावना अधिक पाई गई। खास तौर पर जो लोग उपयोग में सबसे ऊपरी 25 प्रतिशत में आते थे, वे निचले 25 प्रतिशत उपयोगकर्ताओं की तुलना में दोगुने से भी अधिक अकेलापन महसूस करने की रिपोर्ट कर रहे थे।
शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि यह पैटर्न केवल युवाओं तक सीमित नहीं है। रिटायरमेंट के करीब पहुंच रहे लोगों में भी सोशल मीडिया के अधिक इस्तेमाल और अकेलेपन का गहरा रिश्ता पाया गया। विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार स्क्रॉल करना या दिन में सौ से अधिक बार चेक करना वास्तविक जुड़ाव की जगह नहीं ले पाता। यह आदत असल सामाजिक संपर्क को कम कर देती है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि अकेलापन केवल मानसिक नहीं बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक है। यह हृदय रोग, अवसाद, नशे की प्रवृत्ति और अन्य गंभीर समस्याओं का खतरा बढ़ाता है।
हालांकि शोधकर्ताओं ने यह भी साफ किया कि यह अध्ययन प्रेक्षण आधारित है, यानी इसमें कारण और परिणाम की दिशा पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। संभव है कि अकेले लोग सोशल मीडिया की ओर ज्यादा आकर्षित हों, या फिर सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग उन्हें और अकेला बना दे। लेकिन दोनों ही स्थितियों में परिणाम यही बताते हैं कि समस्या का समाधान स्क्रीन पर और समय बिताने से नहीं होता।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि लोग सोशल मीडिया को वास्तविक संपर्क के लिए इस्तेमाल करें, जैसे वॉइस नोट भेजना, कॉल करना या मुलाकात तय करना। इसके साथ ही दिन में ‘ऑफ टाइम’ तय करना और परिवार व मित्रों के साथ वास्तविक समय बिताना अधिक फायदेमंद होगा। स्वास्थ्य सेवाओं और नियोक्ताओं को भी नियमित स्वास्थ्य जांच में अकेलेपन पर ध्यान देना चाहिए और सामुदायिक गतिविधियों या सपोर्ट ग्रुप जैसी पहल को बढ़ावा देना चाहिए।