भारत में गैर-संचारी रोग यानी नॉन कम्युनिकेबल डिज़ीज़ (एनसीडी) तेजी से गंभीर चुनौती बन रहे हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा किए गए हालिया राष्ट्रीय सर्वेक्षण ने बताया कि देश में टाइप-2 डायबिटीज़ का प्रचलन 11.4% और प्रीडायबिटीज़ का 15.3% है। इसके साथ ही सामान्य मोटापे की दर 28.6% और पेट से जुड़े मोटापे की दर 39.5% पाई गई। एनसीडी भारत में कुल मौतों का 68% यानी 63 लाख मौतों के लिए जिम्मेदार हैं। आर्थिक दृष्टि से भी यह संकट गहरा है, क्योंकि 2060 तक मोटापे और अधिक वजन के कारण भारत को 839 बिलियन अमेरिकी डॉलर यानी सकल घरेलू उत्पाद का 2.47% तक का नुकसान हो सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अस्वास्थ्यकर भोजन की आदतें और शारीरिक निष्क्रियता एनसीडी का बड़ा कारण हैं। शोध बताते हैं कि यदि आहार और शारीरिक गतिविधि पर नियंत्रण रखा जाए तो 50% तक नए डायबिटीज़ के मामलों को रोका जा सकता है। भारत में औसत वयस्क अपनी ऊर्जा का 65–75% कार्बोहाइड्रेट से लेता है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है, जबकि प्रोटीन का हिस्सा केवल 9–11% और वसा 14–23% तक है। केवल मात्रा ही नहीं बल्कि गुणवत्ता भी अहम है। परिष्कृत अनाज बनाम साबुत अनाज, पशु प्रोटीन बनाम पौध आधारित प्रोटीन और संतृप्त वसा बनाम असंतृप्त वसा के फर्क से रोगों पर बड़ा असर पड़ता है।
आगे का रास्ता आहार में सुधार और जागरूकता पर आधारित है। क्षेत्रीय विविधता को ध्यान में रखते हुए कार्बोहाइड्रेट की मात्रा घटाना, पौध-आधारित प्रोटीन और स्वस्थ वसा का सेवन बढ़ाना आवश्यक है। राष्ट्रीय स्तर पर लक्षित नीतियां और व्यक्तिगत स्तर पर स्वस्थ जीवनशैली ही इस बढ़ते संकट को रोक सकती हैं।
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