सुप्रीम कोर्ट में बलवंत सिंह राजोआना के मामले पर सुनवाई के दौरान उनकी मानसिक स्थिति (sanity) को लेकर उनके वकील ने चिंता जताई। वकील ने कोर्ट को बताया कि राजोआना की मानसिक स्थिति समय के साथ बिगड़ रही है और उन्हें उचित कानूनी और चिकित्सा सहायता की आवश्यकता है।
इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि फांसी में देरी के लिए कौन जिम्मेदार है। न्यायालय ने संघीय सरकार से पूछा कि आखिर किस कारण से बलवंत सिंह राजोआना की फांसी को इतने लंबे समय तक टाला गया। कोर्ट ने यह भी जोर दिया कि मृत्युदंड से जुड़े मामलों में न्यायिक प्रक्रिया में देरी से न केवल न्याय प्रक्रिया प्रभावित होती है बल्कि दोषी की मानसिक स्थिति पर भी गंभीर असर पड़ता है।
यह मामला आखिरी बार 2025 की शुरुआत में आया था, जब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से आग्रह किया था कि वह राजोआना की कृपा याचिका (mercy petition) पर निर्णय ले। तब से यह मामला लंबित है और याचिका पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।
और पढ़ें: किशोरों की सहमति की वैधानिक आयु पर सुनवाई 12 नवंबर को: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वे यथाशीघ्र निर्णय लें और न्याय की सुनिश्चितता के साथ मामले को आगे बढ़ाएं। न्यायालय ने कहा कि लंबी देरी से न केवल मृत्युदंड की कार्यवाही प्रभावित होती है बल्कि न्यायिक प्रणाली की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में समय पर निर्णय और दोषियों की मानसिक स्थिति पर ध्यान देना न्यायिक जिम्मेदारी है।
और पढ़ें: केवल आपराधिक अतीत को आधार बनाकर जमानत अस्वीकार नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट